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पत्र : मगनलाल गांधीको

समझता था कि उसे मैंने सूरतके पत्रसे सुधार लिया है। अधिक विचार करनेपर मैंने देखा कि मेरी पहली माँग भूलभरी थी। जिन कार्योंके बारेमें हमें ऐसा लगे कि उन्हें दूसरे लोग सँभाल लेंगे तो उन कार्योंको हमें छोड़ते चले जाना चाहिए अथवा कम कर देना चाहिए और जिनमें दूसरोंका विश्वास न हो या थोड़ा हो किन्तु जिनकी जरूरत भी जान पड़े उन कार्योंको हमें ग्रहण कर लेना चाहिए। सूत कातनेका काम ऐसा ही है। साथ ही में ज्यों-ज्यों अधिक अनुभव प्राप्त करता जाता हूँ, त्यों-त्यों समझता जाता हूँ कि मशीन हमें सदाके लिए गुलाम बना देगी और हो रहा है। मशीनोंके बारेमें मैंने जो मत 'हिन्द स्वराज्य' में प्रकट किया है वह अक्षरशः सही है। सत्याग्रहकी भी मैं और छान-बीन कर रहा हूँ। मैं यह देख रहा हूँ कि सत्याग्रह कमजोरसे-कमजोर और सबलसे-सबल दोनों तरहके मनुष्योंके लिए शुद्धतम हथियार है। मिलके बने हुए स्वदेशी सूतसे बहुतसे व्यापारी अपने-आप कपड़ा बुनवा लेंगे । औरोंसे मैं यह काम जल्दी करा सकूँगा । परन्तु सूत कातनेका काम तो केवल हम ही शुरू कर सकते हैं । परसों मेरे पास कुछ पंजाबी आये थे । उन्होंने कहा कि पंजाबकी ऊँचे और नीचे घरानोंकी सभी महिलाएँ घरपर सूत कातकर अपने कपड़े जुलाहेसे बुनवाती हैं । इसलिए सूत रुईके भाव पड़ जाता है । यह बात खूब मनन करने लायक है । तुम केशूको ले गये, सो ठीक किया। केशू वहाँसे रुई कातना सीख आयेगा, तो यहाँ सिखा सकेगा । हमारा कोई भी एक आदमी वहाँसे सीख ले, तो हमारा काम चल जायेगा ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

३०८. पत्र : मगनलाल गांधीको

बम्बई
[ जून १, १९१९ के बाद ][१]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । मैंने वहाँसे बीजापुरके पतेपर तुम्हें जो दो पत्र लिखे थे, उम्मीद है, वे तुम्हें मिल गये होंगे। उनमें तुम्हारे प्रश्नका उत्तर आ जाता है। फिलहाल तुम्हारा काम मुख्य रूपसे बुनाई और खेतीकी देखभाल करना है । मेरा निश्चित मत है कि तुम्हें अपना कुछ समय बुनाईके कामके लिए जरूर देना चाहिए। मुझे विश्वास है कि मैंने जो परिवर्तन किये हैं वे यदि तुम्हें उचित लगेंगे तो बुनाईके काममें बहुत सुधार हो

 
  1. इस पत्रमें गांधीजीने जिन दो पत्रोंका उल्लेख किया है उनमें से एक जून १, १९१९ को अहमदाबादसे लिखा गया था । देखिए पिछला शीर्षक ।