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पत्र : रेवरेंड एम० वेल्स ब्रांचको

इस प्रयोगको जीवनको एक स्थायी वस्तुके रूपमें स्वीकार करेगा, तब स्वराज्य और स्वातन्त्र्यका पहला पाठ सीखेगा ।

मो० क० गांधी

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

२७९. पत्र : रेवरेंड एम० वेल्स ब्रांचको

लैबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
मई १२, १९१९

प्रिय रेवरेंड ब्रांच,[१]

आपके पत्रके<ref>तारीख ९-५-१९१९ का, जिसमें तीन प्रश्न पूछे गए हैं देखिए एस०एन० ६६०८। लिए धन्यवाद । मेरा खयाल है कि ईसाई धर्मके कुछ सिद्धान्त भारतके भावी विकासपर अपनी छाप अवश्य ही छोड़ेंगे । यदि आधुनिक आन्दोलनसे आपका तात्पर्य सुधारोंके लिए किये गये आन्दोलनसे है तो वह आधुनिक संस्कृति और आधुनिक शिक्षाका परिणाम है । परन्तु यदि आधु- निक आन्दोलनसे आपका अभिप्राय सत्याग्रहसे है तो वह प्राचीन शिक्षाका अधिक विस्तृत उपयोग है । मैं नहीं समझता कि इन दोनों बातोंमें से किसीका भी ईसाई धर्मकी शिक्षासे कोई सम्बन्ध है ।

मेरी धारणा है कि ईसामसीह संसारके महानतम शिक्षकोंमें से एक थे । अवतार शब्दके हिन्दू अर्थमें मैं उन्हें अवतार मानता हूँ । जिस अर्थमें कट्टर ईसाई धर्म उन्हें संसारका त्राता समझता है उस अर्थमें मैं उन्हें संसारका त्राता नहीं मानता। परन्तु वे उस अर्थमें एक त्राता अवश्य थे, जिसमें बुद्ध, जरथुस्त, मुहम्मद तथा अन्य अनेक महान् व्यक्ति थे। दूसरे शब्दोंमें मैं यह नहीं मानता कि संसार भर में केवल ईसा ही देवत्वसे विभूषित थे। मैंने जब 'सर्मन ऑन द माउंट' [ पर्वतीय उपदेश ] पढ़ा तब मेरे मनपर उसका बहुत गहरा असर पड़ा। मैं आपके इस विचारसे सहमत हूँ कि ईसामसीहके उपदेशोंका वास्तविक अर्थ क्या है, इसका प्रचार-प्रसार भारत द्वारा ही होगा। मैं लाखों भारतीयोंके बीच घूमा फिरा हूँ । परन्तु मुझे ईसामसीहका कोई भी गुप्त अनुयायी नहीं मिला। इसका अर्थ यह नहीं है कि भारतमें ईसामसीहके गुप्त अनुयायी हैं ही नहीं । होंगे तो जरूर परन्तु बहुत नहीं । अस्तु, मैं आपकी इस रायसे पूर्णतया सहमत

 
  1. प्रबन्धक, लखनऊ स्कूल ऑफ कॉमर्स, लखनऊ ।