काममें कमजोरी ही दिखाई दे तो आप मुझे अपनी आलोचना अवश्य भेजें। और लोगोंके साथ सलाह करके भी आप मुझे आलोचना भेजेंगे, तो मुझे बड़ी खुशी होगी । आपकी आलोचना मुझे ठीक प्रतीत होगी, तो भी फिलहाल में दूध जारी ही रखूंगा । इसलिए इस डरसे कि कहीं में दूध न छोड़ दूं, आप संकोच न करना । मणिबहनको[१]आप पढ़ाया करते हैं, वह मुझे बहुत अच्छा लगता है । अगर हम अपनी सब स्त्रियोंको आगे ला सकें, तो इससे हम बहुत बड़े परिणाम प्राप्त कर सकेंगे ।
[ मोहनदासके वन्देमातरम् ]
- [ गुजरातीसे ]
- महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५
८९. पत्र : बलीको
[ बम्बई ]
जनवरी २१, १९१९
तुम्हारा पत्र मुझे मिला । मेरा स्वास्थ्य भला-बुरा रहा करता है । कोई चार दिन मैं बवासीरसे बहुत पीड़ित रहा। कल डॉक्टरने चीरा लगाया है, इसलिए अब पता लगेगा कि दर्द से मुक्त होऊँगा या नहीं। बच्चे आनन्दमें हैं । परसों कुमीके[३]साथ भेज दिये थे । हम रातको सोनेके लिए बच्चोंको कुमीके साथ नहीं जाने देते । हरिलालका पत्र आया है, जिसमें वह लिखता है कि बच्चोंके सोनेके स्थानमें परिवर्तन न किया जाये । में तुम दोनोंकी इच्छानुसार बच्चोंकी व्यवस्था नहीं कर सकता, इससे तुम दोनोंको बड़ा दुःख होता है । फिर भी मुझे, निर्दयतापूर्वक ही क्यों न हो, बच्चोंको तुम्हारे पास भेजनेसे इनकार करना पड़ रहा है। बच्चे बार-बार स्थान परिवर्तन न करें, यह अत्यन्त आवश्यक है । कलसे बच्चों को पढ़ानेके लिए मास्टरका भी बन्दोबस्त किया है । मनुका[४]जो इलाज हो रहा है, उससे मनु दिन-दिन बढ़ती जा रही है । रामीका[५] भी यही हाल है । ऐसी स्थितिमें अगर तुम केवल बच्चोंका ही स्वार्थ देखोगी, तो बच्चोंको वहाँ भेजनेका आग्रह नहीं करोगी । परन्तु तुम हर महीने या दो महीनेमें या अधिकसे-अधिक तीन महीने में साबरमती आओ, आश्रममें रह जाओ और बच्चोंके साथ हँसो-खेलो, यह मैं चाहता हूँ । यहाँ आ जाओ तो साथ रहनेको भी मिलेगा, सो अलग। छबलभाभी[६]और चंचल, दोनोंका देहावसान हो जानेसे तुम्हें भारी आघात पहुँचा है । अगर तुम्हारा दुःख किसी