उसका दान देगा। यह ब्राह्मणका धर्म है; जिससे इसका पालन हो वही कर सकता है। ऐसे ब्राह्मण पैदा होंगे, तो उनके आगे धन और सत्ता दोनों सिर झुकायेंगे।
मैं चाहता हूँ और परमात्मासे प्रार्थना करता हूँ कि गुजरात शिक्षा मण्डलमें इतनी अटल श्रद्धा जागे।
शिक्षा स्वराज्यकी कुंजी है। राजनैतिक नेता भले ही श्री मॉण्टेग्युके[१] पास जायें, राजनैतिक क्षेत्र भले ही इस सम्मेलनकी मर्यादाके अन्तर्गत न हो, परन्तु शुद्ध शिक्षाके बिना उस दिशामें भी सब प्रयत्न व्यर्थ हैं। शिक्षा इस सम्मेलनका खास क्षेत्र है। इसमें हमारी जीत हुई, तो फिर सर्वत्र जीत ही जीत है।
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि
८. पत्र: मगनलाल गांधीको
[अक्तूबर २०, १९१७ के बाद][२]
तुम्हारा पत्र मिल गया है। गुरुप्रसादजीकी बात तुम्हींपर छोड़ता हूँ। यदि तुम्हें लगे कि वे सच्चे देशभक्त हैं, और आश्रममें बिना झंझटके रह सकते हैं, तथा जो काम दिया जाता है उसे शुद्ध निष्ठासे करते हैं, तो १० रुपये तक भेजनेमें मुझे कोई आपत्ति नहीं दिखती। लेकिन इसका दायित्व तुमपर होगा। मैं नहीं चाहता कि मैं कोई काम करूँ और उसका परिणाम तुम्हें झेलना पड़े। मैंने उन्हें कुछ भेजनेकी बात नहीं सोची थी, मुझे उनकी जरूरतोंके बारेमें ही कुछ मालूम नहीं है; फिर भी किसी योग्य व्यक्तिके लिए तो हम गुंजाइश निकाल ही सकते हैं। व्रजलालभाईकी[३] तबीयत ठीक रहती है। भाई फूलचन्दकी[४] तबीयत भी ठीक हो गई होगी। उनसे कहना कि मुझे अपनी पत्नीकी हालतके बारेमें लिखें। भाई सांकलचन्दसे कहना कि शिक्षा सम्मेलनके भाषणका अनुवाद मुझे जल्दी भेज दें।
बापूके आशीर्वाद
महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस॰एन॰ ६४१३) की फोटो-नकलसे।