३४२. पत्र: मगनलाल गांधीको
बम्बई
आषाढ़ सुदी ६ [जुलाई १४, १९१८]
श्री प्रैटसे मिलनेके बाद में वापस नहीं आ सका। क्योंकि जगजीवनदासकी बीमारीकी खबर मिली और मुझे नडियाद रवाना होना पड़ा। श्री प्रैटके यहाँ कई अंग्रेज मुझे घेरकर बैठ गये और बड़ी मिठाससे बातचीत करने लगे। उन्होंने आश्रम देखनेके लिए आनेकी इच्छा प्रकट की। मैंने उनसे कहा कि वे शनिवारको आयें। सम्भवतः उस दिन मैं वहाँ होऊँगा। यदि जल्दी रवाना हो सका तो मैं शनिवारको दोपहरकी गाड़ीसे आऊँगा। मैं आऊँ तो ठीक और न भी आऊँ तो उनके आनेकी पूरी उम्मीद रखना। वे शामको पाँच बजेके बाद किसी समय आयेंगे। मैंने उनसे कहा है कि यदि वे प्रार्थनाके समयतक रुकेंगे तो आश्रमको ठीक तरहसे देख सकेंगे। सब लड़कोंको अथवा खास-खास लड़कोंको अंग्रेजी भजन सिखा देना चाहिए। ‘लीड काइंडली लाइट’ भजन गाना। यदि वे पाँच बजे आयें तो उन्हें रसोई और अन्य स्थान दिखा देना और भोजन भी दिखाना।
मैं यह पत्र बम्बईसे लिख रहा हूँ। मैं करमसदसे सीधा यहाँ आया हूँ। बम्बई में तिलक महाराज हैं। यह तय हुआ है कि मैं उनसे मिलने के बाद ही अपने योजना सम्बन्धी विचार प्रकट करूँ, इसलिए मैं लोगोंसे मिल रहा हूँ। नडियाद बुधवारकी शामको लौटूँगा। यहाँसे मंगलवारकी रातको रवाना होऊंगा; किन्तु रास्तेमें गोधरा जाना है। गोधरासे उसी दिन नडियाद लौटूँगा।
बापूके आशीर्वाद
तुम हिसाब तो ठीक-ठीक रख रहे होगे। किसी दूसरेकी सहायता लेकर भी उसको ठीक कर लेना।
- मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७३२) से।
- सौजन्य: राधाबेन चौधरी