जरूरत थी। काम अब भी चल ही रहा है। यह तो मैंने अभी तक का परिणाम बताया है।
बापूके आशीर्वाद
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
३३९. पत्र: हरिलाल गांधीको
[नडियाद]
जुलाई ९, १९१८
तुम्हारा पत्र मिला। मुझे जो सत्य प्रतीत हुआ, उसे कहना निर्दयता हो, तो मेरा पत्र जरूर निर्दयतापूर्ण है। मैं अब भी कहता हूँ कि दुनिया तुम्हें निर्दोष कभी न मानगी। तुमने साक्षी में भी कहा हो, फिर भी तुम्हारे सट्टेकी कल्पना नरोत्तम सेठको नहीं हो सकती। तुमने तो भूल-पर-भूल की। तुमने दस हजार खोकर भी हाथ नहीं खींचा। लेकिन तुम्हारे साथ बहस नहीं करनी चाहिए। ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे। मैंने भूल की होगी तो मैं उसे सुधार लूँगा। तुम मेरी और भी भूल बता सको तो बताना।
मैं तुम्हारे लड़ाईमें शरीक होनेकी बात समझ गया। जब मुझे तुम्हारी सचाईमें शंका नहीं थी, तब मैंने वह सुझाव दिया था। अब मुझे नहीं लगता कि उस सुझावमें कोई रस है। जबसे मुझे शंका हुई है, तबसे मेरी क्या हालत हुई है, मैं इसकी कल्पना तुम्हें नहीं करा सकता।
मेरी तो बस यही इच्छा है कि प्रभु तुम्हारा कल्याण करें; तुम्हें सन्मार्ग दिखायें।
बापूके आशीर्वाद
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
३४०. पत्र: मगनलाल गांधीको
[नडियाद
जुलाई ९, १९१८]
पूज्य खुशालभाई और देवभाभीको शान्ति मिल सके, इसके लिए जो-कुछ करना उचित हो, सो करना। प्रभुदास और अन्य लोग वहाँ भोजन करते हैं, मुझे इसका कुछ विपरीत परिणाम होता दिखाई देता है। केशू और राधाको भारी आघात पहुँचता होगा। विवेकपूर्वक सोचकर जो उचित लगे, सो कर लेना।
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४