मिलनेवाले सभी लाभ छोड़ देने चाहिए या युद्ध-संचालनके काममें अपनी पूरी शक्तिसे उसे मदद देनी चाहिए। लाभोंका त्याग करने के लिए हम तैयार नहीं हैं। हिन्दुस्तानियोंको तो दोहरे कर्त्तव्यका पालन करना है। यदि वे शान्तिका सन्देश फैलाना चाहते हों, तो उन्हें पहले युद्धमें अपनी शक्ति साबित करनी होगी। यह भयंकर सत्य मैंने समझा जो राष्ट्र युद्ध करनेके अयोग्य है, वह स्वानुभूत ढंगसे युद्ध न करनेके लाभ सिद्ध नहीं कर सकता। इस बातसे मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि हिन्दुस्तानको लड़ना ही चाहिए। किन्तु यह जरूर कहता हूँ कि हिन्दुस्तानको लड़नेकी कला आनी चाहिए। अहिंसाका अर्थ है, मारने या चोट पहुँचाने की इच्छाको मिटा देना। अहिंसा ऐसे ही लोगोंके प्रति बरती जा सकती है, जो हमसे हर तरह घटिया हों। इसका अर्थ यह हुआ कि पूर्ण अहिंसा-धर्मीको सर्वांग पूर्णता प्राप्त होनी चाहिए। तब क्या इसका अर्थ यह हुआ कि हम सबको पूरे प्रेमधर्मी बनने से पहले सैंडो बननेकी कोशिश करनी चाहिए? मुझे यह अनावश्यक मालूम होता है। हमारे लिए इतना ही काफी है कि हम दुनियाका अडिग भावसे सामना कर सकें। जो नितान्त आवश्यक है, वह है वैयक्तिक साहस, और कुछ लोगोंमें ऐसा साहस लड़ाईकी शिक्षा पानेके बाद ही आ सकता है। मैं जानता हूँ कि मैंने अपनी दलील बड़े बेढंगे तौरपर पेश की है। मैं नये अनुभवोंसे गुजर रहा हूँ। अपने आन्तरिक विचार स्पष्ट ढंगसे व्यक्त करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। कुछ बातें मुझे अभी साफ दिखाई नहीं दे रही हैं, और जो चीजें मेरे मनमें साफ हो गई हैं, उन्हें व्यक्त करने के लिए मैं शब्द ढूंढ़ रहा हूँ। प्रकाश और मार्ग-दर्शनके लिए में प्रार्थना कर रहा हूँ और खूब विचारपूर्वक काम कर रहा हूँ। मुझे जरूर लिखना और मेरी जो दलीलें तुम्हें टिकने लायक न लगें, उनके हर शब्द और हर वाक्यपर लड़ना। इससे में अपना मार्ग खोजने में समर्थ होऊँगा।
सस्नेह,
तुम्हारा,
बापू
देवदास इस समय मद्रासमें है, और यदि तुम भी मद्रासमें हो तो उससे मिलना। उसका पता...। वह हिन्दीकी कक्षाएँ चला रहा है।
माई डियर चाइल्ड