आफ्रिकामें हजारों लोग जेल गये, तब मैंने कभी अपील नहीं की। जब हम तपश्चर्या के रूप में जेल जाना चाहते हैं, तब कोई अपील नहीं हो सकती। शायद खेड़ाके लोग इतने ऊँचे नहीं उठे। किन्तु यदि वे उठ गये होते तो मैं उन्हें सलाह देता कि वे कोई बचाव न करें और न्यायालयको, जो वह चाहता है, करने दें। जिलेमें दो या तीन मामले और हैं जो विचाराधीन हैं। मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप अपना बचाव न करें; बल्कि कैदका कष्ट उठायें। उससे हमें बहुत सीखने को मिलेगा; और मेरा दृढ़ विश्वास है कि इसी प्रकार कार्य करके हम देशको आगे बढ़ा सकते हैं।
बॉम्बे क्रॉनिकल, १२-६-१९१८
२९२. पत्र: एल० रॉबर्ट्सनको
बम्बई
जून ९, १९१८
मुख्य सचिव
राजनीतिक विभाग
बम्बई सरकार
प्रिय श्री रॉबर्ट्सन,
खेड़ासे लौटनेपर अभी कल शामको ही नडियादमें आपका तार सं० ४६३०[१] मिला। आपके तारमें दिये गये प्रस्तावका समर्थन करनेका वचन देनेसे पहले मेरी इच्छा है। कि मैं उसके बारे में पूर्ण रूपसे जानकारी प्राप्त कर लूँ। मैं योजनाको भी देखना चाहूँगा। मेरा पता है: मारफत, रेवाशंकर जगजीवन, लेबर्नम रोड, चौपाटी।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
इंडिया ऑफिस ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स: ३४१२/१८; तथा बॉम्बे गवर्नमेंट होम डिपार्टमेंट स्पेशल फाइल सं० १७८८; सन् १९१८
- ↑ जून ७, १९१८ के इस तारमें लिखा था: “यदि आप इस मासकी १० तारीखके सम्मेलन में निम्नलिखित प्रस्तावका समर्थन करनेकी स्वीकृति दें तो परमश्रेष्ठको प्रसन्नता होगी। प्रस्ताव: इस सम्मेलनका विचार है कि इस प्रान्तकी जनशक्ति एवं साधन स्रोतोंका युद्धके निमित्त यथासम्भव पूरा उपयोग और विकास किया जाये। इस उद्देश्यको सामने रखते हुए यह सम्मेलन सिफारिश करता है कि एक युद्धार्थ-निकाय (वॉर पर्पजेज़ बोर्ड) स्थापित किया जाये, जिसमें सरकारी और गैरसरकारी दोनों प्रकारके सदस्य हों, और जो योजना कार्यसूचीके साथ नत्थी किये स्मृतिपत्रमें दी गई है, उसे स्वीकार और अंगीकार किया जाये। प्रस्ताव समाप्त। उल्लिखित स्मृतिपत्र कल तैयार हो जायेगा और उसे आपके बम्बईवाले पतेपर भेज दिया जायेगा। पतेकी जानकारी कृपया तार द्वारा दीजिए।”