है, बड़प्पन है। बिना किनारीकी सफेद साड़ी पहनने में तनिक भी न हिचकना। मैं जल्दी आनेकी कोशिश करूँगा।
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
४८. पत्र : मगनलाल गांधीको
[ बम्बई जाते समय गाड़ीमें ]
अप्रैल २३, १९१८
बाने कहा है कि तुम्हारे और सन्तोकके बीच कुछ कहा-सुनी चल रही है और तुम्हारा मुख उदास था। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हरगिज न हो। सन्तोक को धीरजसे आगे बढ़ाओ। अधीरता प्रेमके अभावकी सूचक है। इतना काफी है कि हम किसीको उसके बुरे कामोंमें मदद न दें। तुम्हारी चिन्ता तुमको जला रही है, आगे नहीं बढ़ने देती। इस स्थितिसे अब तो तुम्हें मुक्त हो ही जाना चाहिए।
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। २/१४
[ गीताके ] इस श्लोकपर विचार करो और उसका तत्त्व अपनी अन्तरात्मामें उतारो। यह श्लोक बहुत ही शक्तिशाली है। मुझे तो इससे बहुत-सी चिन्ताओंमें शान्ति मिली है। भूपतरायके गृह कलहके शमन में सन्तोकका उपयोग करो। यह कलह दूर किया जा सकता है और अवश्य किया जाना चाहिए।
[बापूके आशीर्वाद]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५९८३) से।
सौजन्य : राधावेन चौधरी