१७२. मिल मजदूरोंके हितैषियोंको उत्तर[१]
[ मार्च १५, १९१८ से पूर्व ][२]
अगर मजदूर इस आशासे सत्याग्रह में शामिल हुए हों कि आप पैसे-टकेसे मदद करके सत्याग्रह करायेंगे, अथवा अपनी आर्थिक मददसे उनको इस लड़ाईमें टिकाये रखेंगे, तो फिर सत्याग्रहका अर्थ ही क्या हुआ ? उसका महत्त्व क्या रहा? सत्याग्रहकी खूबी तो इसी में है कि सत्याग्रही सब तरहके दुःखोंको राजी-खुशी सहन करें। वे जितना अधिक दुःख सहते हैं, उतनी ही अधिक उनकी परीक्षा होती है ।
एक धर्मयुद्ध
१७३. अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी हड़ताल
मार्च १५, १९१८[३]
पत्रिका-१४
जैसे धनवान्का हथियार धन है, वैसे ही मजदूरी मजदूरका हथियार है । अगर धनवान् अपने धनका उपयोग न करे, तो भूखों मरे । इसी तरह मजदूर अपने धन-मजदूरी को काममें न लाये, वह मजदूरी न करे, तो उसे भूखों मरना पड़े। जो मजदूरी नहीं करता, वह मजदूर कैसा ? जो मजदूर मजदूरी करनेमें शरमाता है, उसे खाने- का कोई अधिकार ही नहीं। इसलिए अगर मजदूर इस महान् लड़ाईमें अपनी प्रतिज्ञाका पालन करना चाहते हैं, तो उन्हें मजदूरी करना सीख लेना होगा । चन्दा इकट्ठा करके और बेकार रहकर जो लोग चन्देके पैसेसे अपना पेट भरते हैं, उन्हें जीतनेका कोई हक नहीं। मजदूर यह लड़ाई अपनी टेकके लिए लड़ रहे हैं । कहना होगा कि जो बिना काम किये खाना चाहते हैं, वे नहीं जानते कि टेक क्या चीज है । जो हयादार हैं, और जिन्हें अपनी इज्जत प्यारी है, वे ही टेक निबाहते हैं। जो सार्वजनिक चन्दोंकी रकमसे बिना हाथ-पैर हिलाये जीना चाहते हैं, उन्हें हयादार कौन कहेगा ? इसलिए हमारा फर्ज है कि हम किसी-न-किसी तरह की मजदूरी करके अपना गुजारा करें। मजदूरका मजदूरीसे जी चुराना ऐसा है, जैसा शक्करका मिठास छोड़ देना ।