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पत्र : खेड़ाकी स्थितिके सम्बन्धमें

जबरदस्त दबाव डाले जानेके कारण लगानकी पहली किस्त चुका दी है, और कुछने तो एक ही साथ दोनों किस्तें चुका दी है। इसके लिए बहुतोंको अपने मवेशी आदि बेच देने पड़े। मैं साथमें ऐसे गाँवोंकी एक सूची[१] भेज रहा हूँ, जहाँ फसल चार आने या उससे कम हुई है। मुझे भरोसा है कि आप यह सब देखनेके बाद लगान-वसूली मुल्तवी करनेका हुक्म जारी कर देंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १


१३०. पत्र : खेड़ाकी स्थितिके सम्बन्ध में[२]

[ नडियाद ]
फरवरी २६, १९१३

[ प्रिय मित्र, ]

आपका गुजरात-सभाके सम्बन्ध में लिखा पत्र मैंने पढ़ा है। खेड़ा जिलेके किसानोंके लिए काम करना हम सबका फर्ज है। में तो मानता हूँ कि यदि सभा यह काम नहीं करती तो उसे गुजरात-सभा कहलानेका कोई हक नहीं है ।

किसानोंको जो सलाह दी जाती है उसकी मुख्य जिम्मेदारी मेरे सिरपर है । किसानोंका कहना है कि फसल चार आनेसे कम हुई है। सरकार यह बात स्वीकार करती है कि जिस वर्ष फसल चार आनेसे कम हो, उस वर्ष किसानोंसे लगान वसूल न किया जाये। अगर सरकार किसानोंकी बात न माने तो उनके पास एक ही उपाय है कि वे सरकारको स्वयं लगान न देकर उसे अपना माल-असबाब बेच डालने दें । यदि किसान ऐसा नहीं करते तो यह बात झूठे ठहराये जानेके लिए पैसा देने-जैसी होगी ।

लगान जमीनकी उत्पादन क्षमताके अनुसार निर्धारित किया जाता है। तब स्पष्ट है कि यदि जमीनमें उपज कुछ भी नहीं हो तो लगान नहीं लिया जा सकता । सरकारने किस्तोंकी व्यवस्था की है; लेकिन यह कोई कृपाका कार्य नहीं, बल्कि निरी आवश्यकता है।

लेकिन मुझे तो संभावना ऐसी दिखाई देती है कि इस सम्बन्धमें आपके और सभाके बीच मतभेद बना रहेगा। मगर मतभेद बरदाश्त करना तो सार्वजनिक कार्य- कर्ताओंके कामका एक हिस्सा है। जनताके सामने दोनों मत रखे जा सकते हैं, और

फिर उनके बीच चुनाव करनेकी बात जनतापर रह जायेगी ।

 
  1. यह उपलब्ध नहीं है ।
  2. नाम-पता अनुपलब्ध है ।