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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह तय किया कि ३५ फीसदी इजाफेकी माँग उचित है, और मजदूरोंको इतना इजाफा माँगनेकी सलाह देनी चाहिए। मजदूरोंको यह सलाह देनेसे पहले उन्होंने मालिकोंको अपने इस निर्णयकी सूचना दी और लिखा कि अगर उन्हें इसके विरोधमें कुछ कहना हो, तो उसपर विचार किया जायेगा । पर मालिकोंने इस सम्बन्ध में अपना कोई विचार प्रकट नहीं किया। मजदूरोंकी अपनी माँग ५० प्रतिशत की थी, उसे कम करके उन्होंने ३५ प्रतिशत माँगनेका निश्चय किया ।

मजदूरोंकी प्रतिज्ञा

मजदूरोंने नीचे लिखा निश्चय किया है :
१. जुलाईके वेतनपर जबतक ३५ प्रतिशत इजाफा न मिलेगा, वे कामपर जायेंगे !
२. तालाबन्दीके दिनोंमें किसी भी प्रकारका दंगा-फसाद न करेंगे, मारपीटसे बचेंगे, लूटपाटसे दूर रहेंगे, मालिकोंकी सम्पत्तिको नुकसान न पहुँचायेंगे,

गाली-गलौचसे बचेंगे और शान्तिपूर्वक रहेंगे।

मजदूर अपनी इस प्रतिज्ञाको किसप्रकार पूर्ण कर सकते हैं, इसका विचार पत्रिकाके अगले अंकमें किया जायेगा। मजदूरोंको मेरी[१]सलाह है कि यदि उन्हें कुछ कहना हो तो वे किसी भी समय मेरे बंगलेपर आकर मुझसे कह सकते हैं ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध

१२९. पत्र : कलक्टरको[२]

नडियाद
फरवरी २६, १९१८

[प्रिय महोदय, ]

मैंने स्वयं जो जाँच की उससे और मेरे साथी कार्यकर्त्ताओं द्वारा की गई जाँचसे[३] मुझे विश्वास हो गया है कि लगान-वसूली मुल्तवी रखना उचित है। फिर भी यदि हम सबके निष्कर्ष आपको स्वीकार न हों तो निवेदन है कि स्वतन्त्र वृत्तिवाले लोगोंके एक ऐसे निकाय द्वारा, जिसमें सरकार और जनता दोनोंके प्रतिनिधि शामिल हों, सारे

मामलेकी जाँच करवा लेने के लिए अब भी समय शेष है। देखता हूँ, कई हजार किसानोंने

 
  1. अनसूयाबेन साराभाई
  2. खेड़ाके कलक्टर श्री चैटफील्ड, जो पंच-फैसलेके लिए अंतिम निर्णायक चुने गये थे ।
  3. फरवरी १६ को गांधीजी नदियाद पहुँचे । उसके बाद उन्होंने तथा उनके साथियोंने कई टोलियोंमें वॅटकर बहुत सारे गांवोंमें फसलको स्थितिकी जाँच करनेका काम शुरू किया। एक हफ्ते में ६०० में से ४२५ गांवोंके बारेमें रिपोर्ट तैयार हो गई। गांधीजीने ३० गॉवोंमें जाँचका काम स्वयं किया था । उन्होंने जिला अधिकारियोंको जो पत्र लिखा, उसका आधार इसी जाँचके निष्कर्ष थे।