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१२८. अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी हड़ताल

फरवरी २६, १९१८

पत्रिका ११[१]

तारीख २२ फरवरीसे यह तालाबन्दी [ लॉक आऊट ] शुरू है, और उसी दिनसे बुनाई विभागके कारीगरोंके पास कोई काम नहीं है। जब मिल-मालिकोंने महामारीके कारण दिये जानेवाले भत्तेको बन्द करनेकी सूचना निकाली और उसके सम्बन्ध में गलत फहमियाँ खड़ी हुई, तो मालिकोंकी ओरसे यह कहा गया था कि मजदूरों और मालिकोंके आपसी झगड़ेका फैसला पंच द्वारा करा लिया जाये । यह मान लिया गया था कि मजदूर भी इससे सहमत ही होंगे। आखिर, तारीख १४-२-१९१८ के दिन मिल-मालिकोंने यह तय करनेके लिए कि महामारीके भत्तेके बदले में महँगाईका कितना भत्ता देना उचित होगा, पंच नियुक्त करनेका निश्चय किया। फलतः मजदूरोंकी ओरसे महात्मा गांधी, श्री शंकरलाल बैंकर और श्री वल्लभभाई पटेल, और मालिकोंकी ओरसे सेठ अम्बालाल साराभाई, सेठ जगाभाई दलपतभाई और सेठ चन्दुलाल पंच कायम किये गये और कलक्टर साहब इस पंच-समितिके सभापति बनाये गये । इसके बाद ही किन्हीं गलतफहमियोंकी वजहसे कुछ मिलोंमें मजदूरोंने हड़ताल कर दी। यह मजदूरोंकी भूल थी । मजदूर अपनी भूल सुधारनेको तैयार भी हुए। पर मालिकोंने सोचा कि जब मजदूरोंने पंचोंके फैसलेसे पहले ही हड़ताल करनेकी गलती की है, तो अब वे अपने पंच सम्बन्धी प्रस्तावको रद कर सकते हैं, और उन्होंने यह प्रस्ताव रद कर दिया। इसके साथ उन्होंने यह भी तय किया कि मजदूरोंको उनकी चढ़ी हुई तनख्वाह चुका दी जाये; और अगर २० प्रतिशत भत्तेसे उन्हें सन्तोष न हो, तो उनको रुखसत दे दी जाये। बुनकरोंको सन्तोष न हुआ इसलिए उन्होंने काम छोड़ दिया, और मालिकोंकी तालाबन्दी शुरू हुई । मजदूर पक्षके पंचोंने जब अपनी जिम्मेदारीका विचार किया, तो वे इस नतीजेपर पहुँचे कि उन्हें मजदूरोंको कुछ-न-कुछ सलाह तो देनी ही चाहिए और उनको यह भी बताना चाहिए कि वे उचित रूपसे कितना इजाफा माँग सकते हैं। अतः इस सम्बन्धमें उन्होंने चर्चा चलाई,

मालिकों और मजदूरोंके हितका विचार किया, आस-पासकी परिस्थितिकी जाँच की, और

 
  1. १. मिल-मालिकों और मिल-मजदूरोंकी इस लड़ाई में मजदूरोंका समुचित मार्ग-दर्शन करनेके लिए जो अनेक उपाय किये गये उनमें से एक इन पत्रिकाओंको निकालना भी था। "उद्देश्य यह था कि संवर्धके सिद्धान्त और उसका रहस्य उनके दिलमें सदाके लिए अंकित हो जायें, उन्हें सरल और उच्च कोटिका साहित्य मिलता रहे जिससे उनका मानसिक और बौद्धिक विकास हो और उन्नतिके इन साधनोंको वे अपने बाल-बच्चोंके लिए बपौतीके रूपमें छोड़ सकें।" पत्रिकाएँ अनसूयाबेन साराभाईके नामसे निकली थीं किन्तु जैसा महादेव देसाईने अपनी पुस्तक एक धर्मयुद्ध में कहा है उनके लेखक, गांधीजी थे । यह पत्रिका तालाबन्दीके पाँचवें दिन निकली थी । पत्रिकाएँ शामको आम सभामें पढ़ी जाती थीं ।