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१२५. पत्र : गोरधनदास पटेलको

[ साबरमती ]
फरवरी २०, १९१८

प्रिय श्री गोरधनभाई,[१]

पूज्य अनसूयाबहन, भाई शंकरलाल बैंकर और मैं अभी-अभी जुलाहोंकी सभामें से आये हैं। जुलाहोंने कहा कि मिल-मालिक आठ आने बढ़ाकर उनसे कुछ लिखा लेना चाहते हैं । मैंने उन्हें सलाह दी है कि वे अपने सलाहकारकी सलाह लिये बिना किसी भी कागजपर हस्ताक्षर न करें और यह भी कहा है कि एक-दो दिनमें हम उन्हें यह सलाह देंगे कि उन लोगोंको उचित वृद्धिके रूपमें क्या माँगना चाहिए; हम यह भी कहेंगे कि यदि वे इस सलाहके अनुसार चलेंगे और सुझाया हुआ वेतन पसन्द कर लेंगे, तो उनका भला होगा। इस काममें में अपनी जिम्मेदारी कल मिल ग्रूपके सदस्योंको विनयपूर्वक बता चुका हूँ। मुझे लगता है कि पंच-फैसलेका सिद्धान्त बहुत गुढ़ है और मजदूरोंकी आस्था उसपर से उठ जाये, यह तनिक भी वांछनीय नहीं है।[२] इसलिए मैं अपने ऊपर अनायास आये हुए इस कर्त्तव्यको छोड़ नहीं सकता। भाई शंकरलाल बैंकर और भाई वल्लभभाई पटेल भी इस विचारसे सहमत हैं। मजदूरोंका काम-धन्धेके बिना अनिश्चित स्थितिमें रहना उनके लिए, आपके लिए और सबके लिए अवांछनीय है । बम्बईकी मिलोंमें दिये जानेवाले वेतनों- की दरें भाई बैंकर ले आये हैं । यहाँकी मिलें जो वेतन देती हैं, उनकी सूची आप मुझे तुरन्त भेज सकें तो आभारी होऊँगा । मैं चाहता हूँ कि यदि मिल ग्रूप हमारी रायसे किसी भी प्रकारसे बँधे बिना अलग-अलग विभागके मजदूरोंके बारेमें अपनी राय दे सके, तो दे। अगर हममें से कोई भी किसी बन्धनके बिना सलाह-मशविरेमें शामिल हो सके, तो उस हदतक हमारा प्रस्ताव अधिक ज्ञानपूर्वक प्रस्तुत किया गया माना जायेगा। मुझे मजदूरोंके प्रति उनके मजदूर होनेके कारण ही कोई खास पक्षपात नहीं है, मुझे तो न्यायके प्रति पक्षपात है और चूंकि वह अक्सर मजदूरोंके पक्षमें पाया जाता है, इसलिए आम तौर पर यह खयाल पैदा हुआ है कि मेरा उनके प्रति पक्षपात है। मुझसे अहमदाबादके महान् उद्योगका अनिष्ट हो ही नहीं सकता। इसलिए मुझे आशा है कि आपकी संस्था इस कठिन काम में हमें पूरी मदद देगी।[३] मुझे आशा है कि इस पत्रका उत्तर आप तुरन्त

इसलिए स्थिति बिगड़ गई ।

 
  1. मन्त्री, अहमदाबाद मिल-मालिक संघ
  2. एक पंच-मण्डल १४ फरवरीको नियुक्त किया गया था। इसमें दोनों पक्षोंके प्रतिनिधि थे और सरपंचकी हैसियत से कलक्टर थे। किन्तु कुछ मिलोंके मजदूरोंने गलतफहमोके कारण हड़ताल कर दी।
  3. गांधीजीने अहमदाबाद और बम्बईकी मजदूरीकी दरोंका अध्ययन करनेके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि वेतनोंमें ३५ प्रतिशत वृद्धिकी माँग उचित होगी । मिल-मालिक इस आधारपर निश्चित सम्मति देकर गांधीजीकी सहायता न कर सके, इसलिए स्थिति बिगड़ गई ।