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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आधुनिक सती-साध्वियोंकी भी पूजा करेंगे । हिन्दू उनके वचनोंको शास्त्र-वचनोंके समान प्रमाण मानकर ग्रहण कर लेंगे और स्मृति आदि शास्त्रों में जो आक्षेप हैं उनसे लजायेंगे एवं उन्हें विस्मृत कर देंगे। हिन्दू धर्ममें ऐसे परिवर्तन सदा ही होते आये हैं और होते रहेंगे। इसीलिए तो यह धर्म अबतक जीवित है और भविष्यमें भी जीवित रहेगा । मेरी ईश्वरसे प्रार्थना है कि यह संस्था शीघ्र ही ऐसी नारियोंको उत्पन्न करे।

जैसा ऊपर बताया, हम अपने देशकी नारियोंकी अवनतिके उन कारणोंपर विचार कर चुके हैं जिनको साधन बनाकर उनकी उन्नतिकी जा सकती है। इस ध्येयको साध सकनेवाली स्त्रियाँ तो इनी-गिनी ही हो सकेंगी। परन्तु अब हमें सोचना यह है कि सामान्य स्त्रियोंको क्या करना उचित है। प्रथम कार्यतो यह करना है कि यथासम्भव अधिकसे-अधिक स्त्रियोंको उनकी दुरवस्थाका ज्ञान कराया जाये। में उन लोगोंमें से नहीं हूँ जो यह मानते हैं कि यह कार्य सामान्य शिक्षाके बिना सम्पन्न नहीं हो सकता। यदि ऐसा माना जाये तो इस कार्यकी सिद्धिके लिए दीर्घ-काल चाहिए। में प्रतिक्षण यह अनुभव करता हूँ कि इतने समयकी कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हें उनकी दुरवस्थाका ज्ञान अभी, सामान्य शिक्षाकी प्रतीक्षा किये बिना ही कराया जा सकता है। में अभी बिहारके एक जिलेसे आ रहा हूँ वहाँ मैं उच्च कुलोंकी बहुत-सी बहनोंसे मिला। वे सभी पर्दानशीन थीं । उन्होंने मेरे सम्मुख आकर जैसे बहन भाईसे पर्दा नहीं करती वैसे ही पर्दा हटा दिया । ये बहनें पढ़ी-लिखी नहीं थीं। उनसे मिलनेसे जरा पहले एक अंग्रेज बहन मुझसे मिलकर गई थी। यह बहन जब मैं कई भाइयोंके साथ बैठा था तब उनके बीच आकर ही बात करके चली गई। किन्तु हिन्दू बहनोंसे मिलनेके लिए मुझे अलग कमरेमें जाना पड़ा। मैंने उनसे विनोदमें कहा कि चलो, हम सब वहीं चलकर बैठें जहाँ सब पुरुष बैठे हैं । उन्होंने उत्साहपूर्वक कहा : "हम तो इसमें बहुत प्रसन्न हैं, किन्तु हमारी प्रथाके अनुसार हमें अनुमति दी जानी चाहिए। हमें यह पर्दा तनिक भी नहीं रुचता। इसे आप हटवा दें।" यह बात जितनी करुणाजनक है उतनी ही मेरे उक्त कथनकी समर्थक भी है। इन बहनोंको सामान्य शिक्षाके पूर्व ही अपनी स्थितिका भान हो गया था। इन बहनोंने मुझसे सहायता माँगी, यह तो उचित ही था। किन्तु मैं चाहता हूँ कि उनकी मुक्तिकी शक्ति स्वयं उनमें ही हो । और उन्होंने स्वीकार भी किया कि यह शक्ति उनमें है। मैं अपने मनमें यह आशा लेकर आया हूँ कि हमें इन बहनोंके पर्देसे मुक्त होनेकी खबर कुछ दिनों में ही मिल जायेगी । साधारणतः अपठित मानी जानेवाली ये बहनें चम्पारनमें अच्छा काम कर रही हैं। वे जिस स्वतन्त्रताका उपभोग कर रही है उसका ज्ञान वे अपनी इन अति ज्ञानहीन बहनोंको दे रही हैं। स्त्री पुरुषकी सहचारिणी है, उसकी मानसिक शक्ति पुरुषके समान ही है और उसे पुरुषकी छोटीसे-छोटी प्रवृत्तिमें भाग लेनेका अधिकार है। जितनी स्वतन्त्रता पुरुषको है, उतनी स्वतन्त्रता भोगनेका अधिकार उसे भी है और जैसे पुरुष अपने क्षेत्रमें सर्वोपरि है वैसे ही स्त्री अपने क्षेत्रमें सर्वोपरि है। यह स्थिति स्वाभाविक होनी चाहिए । यह लिखने-पढ़नेका परिणाम नहीं हो सकती । अज्ञान-रूप अन्धकूपमें पतित जड़ पुरुष भी रूढ़ प्रथाके कारण स्त्रीके ऊपर ऐसे अधिकारका उपभोग कर रहा है कि जो न तो उसे शोभा दे सकता है और न जिसे वह सामान्यतः भोग ही सकता है । स्त्रियोंकी इस दुरवस्थाके कारण हमारी बहुतसी प्रवृत्तियाँ बीचमें ही हो