पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/२२१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९१
भाषण : भगिनी समाज, बम्बईमें

भली-भाँति विचार कर लें। भारतमें सर्वत्र यात्रा करते हुए मैंने यह देखा है कि इस सम्बन्धमें जो आन्दोलन चल रहा है वह अनन्त आकाशमें एक छोटी-सी बदलीकी तरह बहुत-थोड़े लोगों तक ही सीमित है। करोड़ों लोगोंको इस आन्दोलनका कोई भान नहीं है। पचासी प्रतिशत लोग हमारी गतिविधियोंसे अलिप्त रहकर निर्दोष जीवन बिता रहे हैं। ये सभी स्त्री-पुरुष जीवनमें अपना-अपना भाग उचित रूपसे पूरा कर रहे हैं। दोनों वर्गोंमें शिक्षा अथवा कहें तो शिक्षाका अभाव समान है और दोनों एक-दूसरेकी सहायता कर रहे हैं। यदि इनके जीवनमें कोई अपूर्णता दिखाई देती है तो वह शेष पन्द्रह प्रतिशत लोगोंके जीवनकी अपूर्णताकी ही झलक है। मैं यह मानता हूँ कि यदि भगिनी समाजकी बहनें इन पचासी प्रतिशत लोगोंके जीवनका भली-भाँति अध्ययन करेंगी तो वे समाजके कार्यक्रमकी रूपरेखा बहुत अच्छी तरहसे बना सकेंगी।

मैं इस समय जो विचार कर सकूंगा वे बहुत कुछ इन पन्द्रह प्रतिशत लोगोंपर ही लागू होंगे। उनमें भी जिन मामलोंमें स्त्री-पुरुष दोनों अवनत हैं उनका विचार करना यहाँ अप्रासंगिक होगा। इसलिए जिन मामलोंमें पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियोंकी अवनति विशेष हुई है, हमें उन्हींपर विचार करना है। कानून-निर्माणका कार्य प्रायःपुरुषोंके हाथों में रहा है और पुरुषोंने सदा विवेकका उपयोग नहीं किया दिखता। स्मृतिकारोंने स्त्रियोंके सम्बन्धमें जो-कुछ लिखा है उसका सर्वथा समर्थन नहीं किया जा सकता। स्मृतियोंके वचन ही बाल-विवाह और विधवाओंपर लगाये गये नियन्त्रण आदिके मूलमें हैं। उन्हें शूद्र वर्णके साथ रखने से हिन्दू समाजको कल्पनातीत आघात लगा है। आपको मेरे इन वचनोंमें और ईसाइयोंके द्वारा प्रायः किये जानेवाले आक्षेपोंमें भाषा-साम्य दिखाई देगा। किन्तु इसके अतिरिक्त हममें अन्य किसी बातमें साम्य नहीं है। ईसाई लेखकोंके आक्षेप हिन्दू धर्मका मूलोच्छेद करनेके उद्देश्यसे किये गये हैं। मैं अपने आपको बहुत ही पक्का हिन्दू मानता हूँ। मेरा आक्षेप इस हेतुसे किया गया है कि हिन्दू धर्मकी न्यूनता दूर हो जाये और उसे अपना वास्तविक भव्य स्थान प्राप्त हो जाये। ईसाई आलोचक हमारी स्मृतियोंकी अपूर्णता बताकर उनको सामान्य ग्रन्थ सिद्ध करना चाहते हैं। मैं यह बतानेका प्रयत्न करता हूँ कि स्मृतियोंकी अपूर्णताका कारण या तो उनमें प्रक्षिप्त श्लोकोंका मिलाया जाना है या हमारे अधःपतनके कालमें मान्यता प्राप्त स्मृतिकारों द्वारा अपने-अपने श्लोकों का जोड़ा जाना है। इन श्लोकोंको निकालकर शेष स्मृतियोंकी अपूर्वता सिद्ध की जा सकती है। मिथ्याभिमान या अज्ञानसे स्मृतियोंमें और हिन्दू धर्मके अन्य सब ग्रन्थों में कोई भी दोष नहीं है, ऐसा मानकर और दूसरोंसे मनवाकर में हिन्दू धर्मका लँगड़ा बचाव कदापि नहीं करना चाहता। मेरा दृढ़ विश्वास है कि ऐसा करनेसे हिन्दू धर्मकी उन्नति नहीं होती, बल्कि अवनति ही होती है। जिस धर्ममें सत्यको उत्कृष्ट स्थान दिया गया है उसमें असत्यका समर्थन कदापि नहीं हो सकता।

तब स्त्री जातिकी उन्नतिके लिए यह आवश्यक है कि हिन्दुओंके धर्मशास्त्रोंमें स्त्रियों के सम्बन्धमें जो आक्षेप हैं उनके निवारणका महान् प्रयत्न किया जाये। किन्तु इस प्रयत्नको कौन कर सकता है और यह कैसे किया जा सकता है। मेरी अल्पमतिसे हमें इसके लिए मुख्यतः सीता, दमयन्ती और द्रौपदी-जैसी पवित्र, अत्यन्त दृढ़-संकल्प और संयमी नारियाँ उत्पन्न करनी होंगी । उस युगमें जिन हिन्दुओंने उनकी पूजा की थी वे आज इन


Gandhi Heritage Portal