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११३. पत्र : एक सहयोगीको

[साबरमती]
माघ सुदी २ [फरवरी १२, १९१८]

भाई श्री

आपका पत्र मिला। आपके ऊपर शब्द-प्रहार करना बेकार मालूम होता है। कई बार मनुष्य अपने दोषोंका वर्णन उन्हें अपना गुण मानकर करता है। ऐसी ही दशा आपकी है। कहा जा सकता है कि चूँकि आपमें साधारण मनुष्योंसे कुछ अलग बात है, इसलिए आप सार्वजनिक जीवनमें भाग लेते हैं। परन्तु अपने कार्योंमें आप साधारण मनुष्योंसे कुछ अधिक कमजोरी दिखा रहे हैं। आपने अपनी पहली पत्नीकी मृत्युसे गहरी चोट लगनेका दावा किया। आपने बताया कि उसके अन्तिम वचनोंका आपके हृदयपर गहरा असर हुआ। किन्तु आप उस चोटको भूल गये और उन अन्तिम वचनोंका असर उड़ गया। तीव्र वेदनासे रोता हुआ मनुष्य एकाएक हँसने लगे, तो वह अभिनयकर्त्ता माना जायेगा या यों कहा जायगा कि वह पागल होकर हँसने लगा है। आप कल रो रहे थे, और आज हँसने लगे। आपके लिए कौन-सा विशेषण प्रयुक्त किया जाये? जिस मनुष्यकी इच्छाएँ उसके वशमें न रहें और जो जरा भी संयम न रख सके, वह क्या सार्वजनिक सेवा करनेके योग्य माना जायेगा? आपसे घटिया लोग सार्वजनिक प्रवृत्तियोंमें संलग्न देखे जाते हैं; उनसे तो मैं ठीक हूँ। इस तरहका जवाब देकर आप जितने गिरे हैं, अब उससे और अधिक न गिरें।

आपने जो कदम उठाया है, वह कदम हिन्दू-गार्हस्थ्य जीवनके सुधारमें बड़े महत्त्वका विषय है। विधवाओंके विवाहसे ज्यादा जरूरी यह है कि विधुर थोड़ीसी तो मर्यादा रखें। आपने तो मूल सिद्धान्तोंको भी भंग किया है। यदि गुजरात सेवा-मंडल बने और मुझे[१] उसके साथ निकटका सम्बन्ध रखना पड़े, तो उसमें आपको लिया जायेया नहीं, यह तय करना मेरे लिए बड़े धर्म-संकटकी बात होगी। तब मैं आपका न्याय नहीं करूँगा; आपका न्याय तो भगवान् ही करेंगे। किन्तु अपने जीवनके साथियोंको चुननेका अधिकार मैं नहीं छोड़ूँगा।

आपकी पहली पत्नीके मरनेसे आपको कितनी चोट पहुँची, इसका अन्दाज आपने दुनियाको बता दिया। आपके कार्यसे मुझपर तो वज्रपात हुआ है। ईश्वर आपकी रक्षा करे और आपको सद्बुद्धि दे।

मोहनदास गांधी

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. मूलमें यहाँ 'आपको' है जो भूल है।