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१०८. पत्र : उत्तरी क्षेत्रके कमिश्नरको

साबरमती
[फरवरी १०, १९१८ के बाद]

[महोदय,]

साथमें कलक्टरके हस्ताक्षरसे जारी किये गये नोटिसकी[१] नकल भेज रहा हूँ। नोटिसके जिस अंशकी भाषाको मैं अशोभनीय और अनावश्यक रूपसे दुःखद मानता हूँ, उसपर निशान लगा दिया है। उस वाक्यसे सभाके मन्त्रियों और सभाकी सलाह माननेवालोंका भी अपमान होता है। मुझे पूरा यकीन है कि गुजराती भाषामें उन शब्दोंका जो अर्थ होता है, वैसा लिखनेका उनका इरादा नहीं रहा होगा। मामलतदारका एक बयान[२] भी साथमें भेज रहा हूँ। आप देखेंगे कि उसकी भाषा भी बहुत आपत्तिजनक है। जब्तीके नोटिसोंके बारेमें मुझे कहना चाहिए कि लगानकी एक छोटी-सी रकम अदा न कर पानेके कारण हजारों रुपयेकी जमीन जब्त कर लेना बहुत ही अनुचित और बड़ी सजा है, और उसे तो प्रतिशोधात्मक ही कहा जा सकता है।[३]

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १

१०९. पत्र : विनायक नरहर भावेको[४]

[साबरमती
अहमदाबाद
फरवरी १०, १९१८ के बाद]

[चि॰ विनोबा,]

समझमें नहीं आता, तुम्हारे लिए किस विशेषणका प्रयोग करूँ। तुम्हारा प्रेम और तुम्हारा चरित्र मुझे मुग्ध कर लेता है। तुम्हारी परीक्षा मुझे मोहमें डुबा देती है। मैं

 
  1. ये उपलब्ध नहीं है।
  2. इस पत्रकी जो प्रतिक्रिया श्री प्रैटके मनपर हुई उसके विषयमें उन्होंने गांधीजीको १६ फरवरीके अपने पत्रमें लिखा : "विभिन्न बयानोंकी भाषाके बारेमें आपने बहुत कड़े शब्दोंका प्रयोग किया है। मैंने उन सब बयानोंको स्वयं ही ध्यानपूर्वक पढ़ा है, और मुझे विश्वास है कि आपकी शिकायतका कोई उचित आधार नहीं है।"
  3. विनोबाने गांधीजीको एक पत्रमें लिखा था कि वे एक वर्षसे आश्रममें क्यों नहीं लौटे। इस पत्रको पढ़कर गांधीजीने कहा: "गोरखने मछन्दरको हरा दिया। भीम है, भीम।' दूसरे दिन प्रात: उन्होंने विनोबाको यह पत्र लिखाया था।