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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

शब्दके प्रचलित अर्थमें शिक्षित नहीं है। गुजराती लिखना-पढ़ना भी उसे बहुत-थोड़ा आता है। कस्तूरबाई अंग्रेजीमें अपने दस्तखत नहीं कर सकती यह लिखनेका उद्देश्य अंग्रेजी शिक्षाको महत्त्व देनेवाले लोगोंको यह बताना था कि जिस संस्थाकी सभी सदस्याएँ अपनी-अपनी भाषा या अंग्रेजीकी पण्डिता हैं, उस संस्थाकी सदस्या बननेके लिए कस्तूरबाई बिलकुल अयोग्य हैं।

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई

१०७. पत्र : हृदयनाथ कुंजरूको[१]

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
फरवरी १०, १९१८

[२]...इस समय में एक बड़ी खतरनाक परिस्थितिसे जूझ रहा हूँ और एक उससे भी ज्यादा खतरनाक परिस्थितिमें कूद पड़नेकी तैयारी कर रहा हूँ।[३] ...अब आप समझ लेंगे कि मैं मेलेमें क्यों नहीं आया।[४] हिन्दू धर्मको उसके आसुरी और दिव्य दोनों स्वरूपोंमें देखनेका वहाँ जो अवसर मिल सकता है, मैं बहुत चाहता था कि उसका उपयोग करूँ। मैं जानता हूँ कि मुझपर आसुरी स्वरूपका कोई असर नहीं हो सकता। किन्तु मैं चाहता था कि उसके दिव्य स्वरूपका मुझपर वही प्रभाव पड़े जो हरद्वारमें पड़ा था।[५] साथ ही वहाँ आपसे मिलना भी हो जाता और भारत-सेवकोंको हर दूसरे महीने बीमार पड़नेकी कुटेव न डालनी चाहिए, इस बारेमें आपको थोड़ा उपदेश देनेका मौका भी मिलता। लेकिन शायद ऐसा बदा नहीं था।

आपका
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
 
  1. पण्डित हृदयनाथ कुंजरू (जन्म १८८७- ), १९३६ से भारत सेवक समाजके अध्यक्ष और राज्यसभाके सदस्य।
  2. मूलमें कुछ अंश छोड़ दिये गये हैं।
  3. उनको कुम्भ मेलेके अवसरपर आमंत्रित किया गया था।
  4. गांधीजी १९१५ के कुम्भ मेलेके अपने अनुभवका उल्लेख कर रहे हैं। उन्होंने दिनभरमें पाँचसे अधिक खाद्य वस्तुएँ न खाने और रात हो जानेपर भोजन न करनेका व्रत वहीं लिया था। देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ७।