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१०३. पत्र : बम्बईके गवर्नरको

बम्बई
फरवरी ५, १९१८

[महानुभाव,]

आशा है, आपकी सरकारके लिए मेरा सुझाव[१] मान लेना सम्भव होगा, और वह एक स्वतन्त्र जाँच-समितिकी नियुक्ति कर देगी। यदि इस प्रकारकी कोई समिति नियुक्त की जाये तो मेरी यह जोरदार सिफारिश है कि उसमें श्री पारेख और श्री पटेलको जरूर शामिल किया जाये। वे दोनों सज्जन इस आन्दोलनमें शुरूसे ही गहरी दिलचस्पी लेते रहे हैं, और उनके द्वारा अनुमोदित किसी भी निर्णयका विरोध कोई नहीं करेगा। समितिके अध्यक्षके रूपमें डॉ॰ हेरॉल्ड मैनका नाम सबको स्वीकार्य होगा। विकल्पके रूपमें श्री यूबैंकके नामपर भी विचार किया जा सकता है। उनके चुनावका भी लोग उतना ही स्वागत करेंगे। मैं आज साबरमती लौट रहा हूँ। वहाँ दो-तीन दिन ठहरूँगा। मेरी जरूरत पड़े, तो मुझे सूचित कीजियेगा।[२]

[आपका, आदि,]

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १
 
  1. स्पष्ट ही तात्पर्य उसी दिन सुबह गवर्नरके साथ हुई शिष्टमण्डलकी मुलाकातमें दिये गये सुझावसे है।
  2. गवर्नरके सचिवने इसके उत्तरमें गांधीजीको फरवरी ९ को इस प्रकार लिखा:
    "न तो ५ तारीखको परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय और आपके बीच हुई बातचीतसे और न अखबारोंमें प्रकाशित विवरणोंसे गवर्नर महोदयको ऐसा लगता है कि स्थानीय अधिकारियोंने सख्तीसे काम लिया है। इसलिए, उनको यह भरोसा नहीं है कि कोई स्वतन्त्र जाँच-आयोग नियुक्त करनेसे कोई लाभ होगा। आपकी ही तरह वे भी लोगोंके मनसे सन्देह-शंका दूर करनेको उत्सुक हैं; और उन्हें आशा है कि कलक्टर और कमिश्नरने जो कदम उठाये हैं—और जिसका विवरण आपको ५ तारीखको ही दे दिया गया था—उनके परिणाम-स्वरूप आप इस सम्बन्धमें संतुष्ट होंगे, तथा लोगोंके मनसे दुःशंकाएँ दूर करनेके लिए सभी सम्बन्धित व्यक्तियोंकी सहायता करेंगे।"