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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

सरकारने गलती की है। शायद सरकारके निचले दर्जे के अफसर उससे कहेंगे कि विज्ञप्ति शुद्ध उद्देश्यसे नहीं, बल्कि किसी प्रच्छन्न उद्देश्यसे जारी की गई थी। यदि सरकार इस गलत विश्वाससे प्रभावित होती है तो मुझे आशा है कि जो लोग किसानोंका साथ देते रहे हैं वे अन्ततक उनका साथ देते रहेंगे और पीछे कदम नहीं हटायेंगे। कोई भी जिम्मेदार तथा ठीक विचार करनेवाला व्यक्ति उन्हें यही सलाह दे सकता था। जनताको भी वैसे ही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे अधिकारियोंको और जन-सेवियोंको पूरा अधिकार है कि वे जनताको उसके अधिकारोंके बारेमें सलाह दें। जो लोग अपने अधिकारोंके लिए नहीं लड़ते वे गुलामों-जैसे हैं (तालियाँ), और ऐसे लोग स्वराज्यके योग्य नहीं हैं।[१] जब अधिकारी सोचते हैं कि वे जनतासे कोई भी चीज ले सकते हैं और उसके कामकाजमें हस्तक्षेप कर सकते हैं तो इससे एक कठिन स्थिति उत्पन्न हो जाती है। और यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाये तो मैं स्पष्ट शब्दोंमें कहूँगा कि जिन लोगोंने जनताको उचित सलाह दी है, वे अन्ततक उसका साथ दें।

मैं अभीतक किसी निष्कर्षपर नहीं पहुँचा हूँ। मेरा आन्तरिक विश्वास है कि जो लोग अपना उत्तरदायित्व समझते हैं वे न्याय प्राप्त करनेके लिए कष्ट उठाने में संकोच नहीं करेंगे। (तालियाँ)। और मैं आशा करता हूँ कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होनेपर आप लोग अपने कदम पीछे हटाकर अपकीर्तिके भाजन नहीं बनेंगे। सत्याग्रहका पहला और अन्तिम सिद्धान्त यह है कि हम दूसरोंको कष्ट न पहुँचायें, बल्कि न्याय प्राप्त करनेके लिए स्वयं कष्ट उठायें। यदि हम ऐसा निश्चय करते हैं तो सरकारको डरनेकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि शुद्ध न्याय प्राप्त करना ही हमारा संकल्प है, और कुछ नहीं। उस न्यायको प्राप्त करने के लिए हमें अधिकारियोंके साथ संघर्ष करना ही है और जो इस प्रकार संघर्ष नहीं करते वे गलामके सिवा और कुछ नहीं हैं। ऐसे अवसरोंपर हम केवल दो हथियार रख सकते हैं—विद्रोह या सत्याग्रह, और मैं तो हमेशा दूसरे उपायसे काम लेनेकी ही प्रार्थना करूँगा। कष्ट सहना, न्यायके लिए लड़ना और अपनी माँगें पूरी कराना प्रत्येक व्यक्तिका जन्म-सिद्ध अधिकार है। इसी प्रकार, हमें कष्ट-सहनके द्वारा ही सरकारसे न्याय प्राप्त करना है। हमें वीर पुरुषोंकी तरह कष्ट सहना चाहिए। मुझे जो कहना है, वह यह कि गुजरातके लोग जिन मुसीबतोंसे होकर गुजर रहे हैं उन्हें दूर करने के लिए हमें ठीक साधनका सहारा लेना है, और बहुत ही दृढ़ताके साथ। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि हम ब्रिटिश सरकारको सत्यसे अवगत करा दें तो अन्तत: वह यकीन कर सकती है। यदि हम अपने निश्चयपर दृढ़ रहे, तो विश्वास रखिए कि खेड़ाके लोगोंको अब और अधिक अन्याय नहीं सहना पड़ेगा।[२]

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-२-१९१८
 
  1. गुजराती दैनिक प्रजाबन्धुके १० फरवरीके अंकमें छपी एक रिपोर्टके अनुसार गांधीजीने यह भी कहा था : "हमें सरकारके सामने अपनी माँग रखनी चाहिए, चाहे इसके परिणाम-स्वरूप हमें कष्ट ही क्यों न उठाने पड़े। भारतमें चार विभिन्न धर्मोके अनुयायी रहते हैं और हिन्दू, इस्लाम, जरथुस्तवाद तथा इसाइयत—इन चारों धर्मोकि सदस्योंको अनेक बार सत्याग्रह करनेकी आवश्यकता होगी।"
  2. इस भाषणकी संक्षिप्त रिपोर्ट सरदार वल्लभभाई पटेल और खेड़ा सत्याग्रहमें भी उपलब्ध है।