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पत्र : मणिलाल गांधीको


यहाँ सत्याग्रहके तीन संघर्ष बिलकुल सिरपर ही आ गये हैं।[१] कहना मुश्किल है कि इनमें से कौन-सा संघर्ष छिड़ जायेगा। किन्तु अभी तो मेरा सारा समय इसीमें जाता है और मुझे हर समय रेल-यात्रा करनी पड़ती है। ये बहुत थकानेवाली होती हैं, पर इनके बिना छुटकारा भी नहीं है।

सस्नेह,

तुम्हारा भाई

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

९६. पत्र : मणिलाल गांधीको

[पटना]
जनवरी ३१, १९१८

[चि॰ मणिलाल,]

मुझे देवीबहनने लिखा है कि तुमने सैमके समक्ष अपने अविवाहित रहनेपर असन्तोष प्रकट किया था। तुम अपने विचार मेरे सामने रखने में कोई अड़चन न समझना। तुम मेरे कैदी नहीं, मित्र हो। मैं तुम्हें अच्छी सलाह दूँगा। उसपर विचार करके तुम्हें जो सूझे, सो रास्ता लेना। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे डरसे कोई पापकर्म न करो। मेरी कामना है कि तुम्हें मेरा या और किसीका भय न हो।

मेरे विचारके अनुसार तो तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिए। इसी में तुम्हारा श्रेय है। अगर यह स्थिति असह्य हो, तो तुम्हें जब वहाँसे छुट्टी मिल सके, तब यहाँ आकर विचार करना। यह स्पष्ट है कि वहाँ तो कुछ भी नहीं होगा। मैं मानता हूँ कि यदि तुम्हें विवाह करना ही हो, तो कन्या मिल जायेगी। मैं आशा करता हूँ कि तुम विवाहकी खातिर ही अपना वहाँका काम नहीं छोड़ोगे। 'इंडियन ओपिनियन' को व्यवस्थितकरके ही तुम विवाहका विचार कर सकोगे। अपनी प्रसन्नता न गँवाना। स्वप्नोंमें मत भटकना। हम हजारों वस्तुओंकी इच्छा करते हैं। वे सभी नहीं मिल सकतीं, यह समझकर पूर्णत: शान्त रहना। जो कुछ करना है, सो शुद्ध और खुले रूपमें करना है, यह निश्चय रखना। फिर तो सब कुशल ही है।

मुहम्मद अलीके मामले में मुझे शायद बड़ी लड़ाई छेड़नी पड़े। अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. यहाँ स्पष्ट ही खेड़ा सत्याग्रह, अहमदाबादमें मिल-मजदूरों सम्बन्धी परिस्थिति और होमरूल आन्दोलनका उल्लेख है।