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९४. पत्र : रेलवे बोर्ड के सचिवको

मोतीहारी
जनवरी २९, १९१८

सेवामें

सचिव
रेलवे बोर्ड

[महोदय,]

आपका इस मासके दिनांक २२ का पत्र, संख्या ५५२-टी-१७ मिला। लम्बे उत्तरके लिए धन्यवाद। आशा है, पत्रके कुछ मुद्दोंके बारे में बादकी किसी चिट्ठीमें लिख पाऊँगा।

फिलहाल मैं आपको अपने उस भाषणकी[१] एक प्रति भेज रहा हूँ, जो मैंने कलकत्तामें हालमें ही हुए समाज-सेवा सम्मेलनमें दिया था। उसमें मैंने रेलवे-सम्बन्धी शिकायतोंसे सम्बद्ध अनुच्छेदको चिह्नित कर दिया है। शायद आप मुझसे इस बातमें सहमत होंगे कि मैंने मुसाफिरोंके साथ काबुलियोंके जिस आचरणका उल्लेख किया है उसपर तुरन्त ध्यान देना आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि यदि उनके लिए पृथक् स्थानका प्रबन्ध कर दिया जाये तो उससे साधारण मुसाफिर काफी हदतक कष्टोंसे बच सकेंगे।

[अंग्रेजीसे]
नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ़ इंडिया : रेलवे, मार्च १९१८, ५५२-टी-१७/१—२४

९५. पत्र : कुमारी एडा वेस्टको

[पटना]
जनवरी ३१, १९१८

प्रिय देवी,

मणिलालका मामला दुःखदायक है। मैंने उसे धीरज बँधाते हुए एक पत्र लिखा है। उसके विवाहकी बात स्वीकार करना मेरे लिए कठिन है। और कुछ वर्ष वह अविवाहित जीवन बिता सके, तो फिर उसे अभ्यास हो जायेगा। मैंने उसे लिखा है कि वह अपनेको बिलकुल स्वतन्त्र माने और मेरी सलाहको एक मित्रकी सलाह ही समझे। अभी तुम सबकी अग्नि-परीक्षा हो रही है। भगवान् करे, तुम सब कोई आँच आये बिना इसमें उत्तीर्ण हो सको।

 
  1. देखिए "भाषण : अखिल भारतीय समाज-सेवा सम्मेलनमें", ३१-१२-१९१७।