के बाद निराशा आ जायेगी। यह आदर्श अपने सामने रखो कि तुम्हें किसी दिन मेरे पास आना है और इस बीच हाथके कामोंको पूरा करके आनेके योग्य बनो।
बापूके आशीर्वाद
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
९१. पत्र : मगनलाल गांधीको
मोतीहारी
पौष सुदी १२, [जनवरी २४, १९१८]
प्रोफेसरकी जेल-यात्रापर तुम लोगोंने उत्सव मनाया सो अच्छा ही किया; संगीतशास्त्रीपर भी ठीक रंग चढ़ गया है। काकाके नाम भेजे गये पत्रसे[१] प्रोफेसरके बारेमें तुम्हें सब कुछ मालूम हो जायेगा। अगर फकीराने[२] राजोंको स्वयंसेवकोंके रूपमें काम करनेको भेजा है तो इससे प्रकट होता है कि उसके अन्तस्तलमें अभी भी आश्रमके लिए स्थान है। ठाकुरलालकी बीमारीने तो बहुत दिन ले लिये। भाई ब्रजलाल जैसा स्वास्थ्यकर ले वहाँ पहुँचे, वैसा ही बनाये रखें तो ठीक है। यहाँ बागान-मालिक बड़ी चीख-पुकार कर रहे हैं। मैं जितना सावधान हूँ उतना ही निश्चिन्त भी हूँ; मुझे तो मुख्यतः इतनी ही निगरानी रखनी है कि किसान कोई गलत कदम न उठा पायें। मैं नरहरिको भरसक जल्दी ही वापस भेज दूँगा। मुझे भी ऐसा लगता है कि राष्ट्रीयशालाको किसी प्रकारका धक्का नहीं लगना चाहिए। तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक होगा। प्रभुदाससे कहना कि पत्र लिखा करे।[३]
बापूके आशीर्वाद
मूल गुजराती पत्रकी महादेव देसाई द्वारा की गई प्रतिलिपि (एस॰ एन॰ ६३३२) की फोटो-नकलसे।