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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

वे उपयोगकी अपेक्षा शोभाके लिए ही अधिक हैं। क्या यह भी सम्भव है कि यह नाजुकपन बिना नमककी खुराकका परिणाम हो? अलबत्ता, अपने जीवनके तरीकेमें मैने और बहुत-से परिवर्तन किये हैं, इसलिए अकेले नमकको इसके लिए जिम्मेदार मानना मुश्किल है। अपने शरीरकी इस खराबीके प्रति—अगर उसे खराबी माना जा सकता हो तो—मेरा ध्यान न खिंचा होता, तो और बहुत-से लाभोंके कारण, जिनका मैंने अनुभव किया है, मैं बिना नमककी खुराककी बड़ी जोरदार हिमायत करता। अगर आपसे मुझे कोई नई जानकारी मिले, तो थोड़े ही समयके लिए क्यों न हो मैं नमक खाना शुरू करना चाहूँगा और अपने शरीरपर उसके क्या परिणाम होते हैं, यह देखूँगा। अपना प्रयोग थोड़े समयके लिए बन्द रखना वांछनीय है या नहीं, इसकी चर्चा डॉक्टर देवके साथ कर ही रहा था कि आपका पत्र आ गया। मैंने अपना पिछला पत्र उसीके उत्तरमें लिखा था। इस मामलेमें आपके पास निश्चित जानकारी हो और आप वैज्ञानिक दृष्टि रखनेपर इतना आग्रह करते हों कि उत्साह के आवेगमें भी सत्यके मार्गसे जरा भी विचलित होनेसे इनकार करें, तो मैं प्लेगकी जाँच और इस बातकी खोज करनेके लिए कि मनुष्यके भोजनमें नमकका मूल्य वास्तवमें कितना है, आपका सहयोग प्राप्त करना चाहूँगा। आपकी बताई हुई पुस्तकें जुटानेकी कोशिश करूँगा।

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई

८९. पत्र : काका कालेलकरको[१]

[मोतीहारी]
जनवरी २४, १९१८

आरोप सच भी हो सकता है और झूठ भी। अगर सच हो तो अपराधीको प्रायश्चित्त स्वरूप जेल जाना चाहिए; और यदि व्यक्ति निरपराध हो [फिर भी उसे सजा दी गई हो तो] उसे चाहिए कि वह न्यायाधीशको शिक्षा देनेके विचारसे जेल जाये। यदि सभी निर्दोष व्यक्ति अपनेको निर्दोष घोषित करते हुए जेल जाने लगें तो हो सकता है किसी दिन कोई निर्दोष व्यक्ति सजा ही न पाये। इतना तो हुआ साधारण दृष्टिसे विवेचन। प्रोफेसरके मामले में बहुत-सी विशेषताएँ हैं। उनपर मामला घोड़ेको तेजीसे हाँकनेके कारण ही नहीं चलाया गया था। सरकारको यह तो एक बहाना मिल गया था। इस मामलेको चलानेका हेतु यही था कि जैसे भी हो मुझे और मेरी आड़में

 
  1. यह पत्र उनके इस प्रश्नका उत्तर देते हुए लिखा गया था कि प्रोफेसर कृपलानीका जेल जाना सत्याग्रह कैसे हो सकता है और इस सम्बन्धमें अपील क्यों नहीं की गई।