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पत्र : डॉ॰ कुलकर्णीको

चाहिए। मुझे तो प्लेग वगैरा रोगोंको नमकके प्रयोगसे सफल रूपमें दूर करने के बारे में आँकड़े चाहिए। निरामिष-आहार सम्बन्धी पुस्तकोंमें नमकके प्रयोगके विरुद्ध मैंने काफी पढ़ा है, इसीलिए मैंने स्वयं नमक छोड़कर देखा। लगभग सात वर्ष पहले कस्तूरबा सख्त रक्तस्रावसे बीमार थीं। कूनके कटिस्नान और खुराकके कड़े प्रयोगोंसे मैं उसका उपचार कर रहा था। जब मैं लगभग निराश हो गया, तब मुझे विचार आया कि श्रीमती वेलैसने नमक और डॉ॰ हेगने दालके विरुद्ध खुब कहा है। डॉ॰ वेलैसकी दलील यह है कि नमक उत्तेजक और प्रदाह-जनक है। वह प्राणिज न होनके कारण बिना पचे ही बाहर निकल जाता है और निकलते-निकलते काफी नुकसान कर जाता है। वह पाचन-रसकी ग्रन्थियोंको जरूरतसे ज्यादा उत्तेजित करता और मेदेमें प्रदाह उत्पन्न करता है और मनुष्यको जरूरतसे ज्यादा खिला देता है। इस प्रकार वह पाचन-तन्त्रपर जरूरतसे ज्यादा बोझ डालता और खूनको कमजोर करता है। सब लोगोंकी तरह कस्तूरबा और मैं नमकको पसन्द करते थे। उसे खासी मात्रामें लेते थे। मैंने अपने मनसे दलीलकी कि शरीरको जो नमक मिलता है, वही शायद उसकी बीमारीको लम्बा करनेके लिए जिम्मेदार है। दालके मामलेमें मैंने जो दलील की, उसमें उतरनेकी कोई जरूरत नहीं देखता। उस समय मैं खुद काफी स्वस्थ था। स्वास्थ्यके कारण मुझे कोई परिवर्तन करनेकी जरूरत ही नहीं थी। फिर भी मैंने देख लिया कि मैं नमक और दाल न छोड़ दूँ, तो कस्तूरबाको वैसा करनेपर राजी न कर सकूँगा। इसलिए ये दोनों चीजें मैंने छोड़ दीं और कस्तूरबासे भी छुड़वा दी। उसके उपचारमें मैंने और कोई परिवर्तन नहीं किया। एक हफ्तेमें ही खून बन्द हो गया और उनका अस्थिपंजर-जैसा शरीर भरने लगा। तबसे अभीतक मैंने नमक नहीं खाया, किन्तु कस्तूरबाको तो नमककी आदत ऐसी पड़ी थी कि उसे छोड़ देनेकी जरूरत समाप्त होनेपर वह उसे फिर शुरू करनेके लालचका मुकाबला न कर सकी। इसलिए पूरी तरह अच्छी हो जानेके बाद उसने नमक लेना शुरू कर दिया। अब भी समय-समयपर जब उसे रक्तस्राव हो जाता है, तब नमक छोड़ देने और घर्षण-स्नान करनेसे वह बिलकुल अच्छी हो जाती है। अपने प्रयोगके इन सात वर्षों में मैंने दमा और फेफड़ोंकी दूसरी व्याधियोंवाले रोगियोंका इलाज बिना नमककी खुराक देकर किया और इसके हमेशा अच्छे ही परिणाम निकले हैं। अपने विषयमें मैं कह सकता हूँ कि जिनजिन लोगोंके सम्पर्क में आया हूँ, नमक न लेनेके कारण मैं उन सबसे कुछ-ज्यादा बीमार नहीं रहा। मैं मानता हूँ कि बिना नमककी खुराकसे अपने ब्रह्मचर्य-व्रतके पालनमें मुझे काफी मदद मिली है। ये सारे अनुभव मेरे सामने मौजूद होनेके कारण नमककी आपकी साग्रह हिमायतसे मुझे जरा आघात लगा है। हाँ, मैं अपने शरीरमें एक बड़ा परिवर्तन देख रहा हूँ और उसके बारेमें मैंने डॉक्टरोंके साथ चर्चा भी की है; किन्तु वे उसपर कोई प्रकाश नहीं डाल सके। मुझे कोई चोट लगती है, तो वह पहलेसे बहुत जल्दी अच्छी हो जाती है। लम्बे सफरके बाद भी मुझे बहुत अधिक थकावट महसूस नहीं होती। लेकिन मालूम पड़ता है कि मैं एक हरी टहनीकी तरह नाजुक और लचीला बन गया हूँ। मेरी चमड़ी बहुत नाजुक और नरम हो गई है। यह छुरीसे अपेक्षाकृत ज्यादा आसानीसे कट जाती है। यद्यपि मैं हमेशा नंगे पैर चलता हूँ, फिर भी मेरे पैरके तलवे औरोंकी तरह कड़े और मोटे नहीं पड़ रहे हैं। मेरे मसूड़े नरम हो गये हैं और मुँहमें जो थोड़ेसे दाँत हैं,