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पत्र : राजस्व सचिवको

मुकदमे खड़े हो सकते हैं। तब यदि नील-उत्पादक चाहेगा तो किसानसे पेशगी कभी वापस ही न माँगेगा और तब संभव है, भोला किसान सदा गुलामीमें ही जकड़ा रह जाये। मुझे आशा है कि यह दलील न दी जायेगी कि नील-उत्पादकोंको पेशगीकी वापसीका भरोसा होना चाहिए। वस्तुत: उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। किसान उनके आसामी हैं और उनपर उनका अधिकार होता है जिसके बलपर वे किसी भी देनदारीको उनसे वसूल कर सकते हैं। इसलिए मुझे यह कहना पड़ता है कि प्रस्तावित संशोधन इस अनिष्टकारी प्रथाको ज्यादासे-ज्यादा दिन तक जारी रखनेकी एक चाल-मात्र है। यदि उक्त संशोधन स्वीकार कर लिया गया तो इससे प्रस्तावित विधानका सान्त्वनाप्रद प्रभाव लगभग नष्ट हो जायेगा और चम्पारनमें आग भड़क उठेगी।

खण्ड ४ (शरहबेशी) में प्रस्तावित संशोधन : इस खण्डके सम्बन्धमें पहला संशोधन सिरनी संस्थानके प्रबन्धक द्वारा किये गये आवेदनपर आधारित है। किन्तु यह संशोधन जिस रूपमें है, उसमें कहा गया है कि कमीकी दरके प्रश्नपर न केवल सिरनीके सम्बन्धमें बल्कि जलहा तथा मोतीहारीके संस्थानोंके सम्बन्धमें भी पुनर्विचार किया जाये। इस मामलेपर पुनर्विचारका कोई भी कारण नहीं है। मोतीहारी संस्थानके मैनेजर श्री इर्विन समझौतेमें शामिल थे। जहाँतक सिरनीके प्रश्नका सम्बन्ध है, मैं नहीं जानता कि मैं जाँचसमितिके रुखकी व्याख्या करनेके लिए स्वतन्त्र भी हूँ। मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि जाँच-समितिको मामला पुन: सौंपे बिना उन अंकोंपर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे उस सुचिन्तित समझौतेके परिणाम हैं जो केवल समिति और नील-उत्पादकोंका ही समझौता नहीं है, बल्कि उन विभिन्न हितोंका भी समझौता है जिनका स्वयं समितिमें प्रतिनिधित्व था। समझौता एक पूरी चीज और अखण्ड है और पूरी चीजको भंग किये बिना उसके एक अंशका भंग नहीं किया जा सकता। यह सच नहीं है कि श्री बायन[१] जैसा उन्होंने अपने आवेदनमें कहा है, गवाही देनेके लिए बुलाये गये या उन्हें अपना वक्तव्य दर्ज करानेका अवसर नहीं दिया गया। सब लोगोंके लिए आम सूचना निकाली गई थी कि यदि वे कोई गवाही देना चाहें तो अपना वक्तव्य भेज दें; वह उनपर भी लागू होती थी। इतना ही नहीं, बल्कि समितिकी रिपोर्टमें उनसे यह दिखानेके लिए खास तौरपर कहा गया था कि शरहबेशीमें किस दरसे कमी की जाये? इसका निश्चय मुख्यत: इस बातको ध्यानमें रखकर न किया जाना चाहिए कि शरहबेशी किस दरसे की गई थी। जो दलील इस मामलेमें लागू होती है वहीं आम तौरपर जलहाके मामलेमें भी लागू होती है।

खण्ड ४ (२) में संशोधन : एक मुद्दा ऐसा है जिसपर चम्पारनके नील-उत्पादकोंके स्मृतिपत्रसे सहमत होना सम्भव है। वह यह है कि इस विधेयकके अन्तर्गत जो लगान निश्चित किया जाये वह अन्तिम तथा अनिवार्य हो। यह उचित है। किन्तु जो भी संशोधन किया जायेगा उसमें अनियमितता तथा अधिकारपत्रके उल्लंघनकी बिनापर अपील करनेका अधिकार सावधानीसे सुरक्षित करना होगा।

विधेयकका खण्ड ५ : मैं इस आशयका संशोधन भेज ही चुका हूँ कि इस खण्डमें से "अपने पट्टेकी जमीनपर या उसके किसी भागपर लगाई गई" शब्द निकाल दिये

 
  1. सिरनी संस्थानके मालिक।