पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/१८१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५१
पत्र : राजस्व सचिवको

हेतु यही है। मुझे तो उन विचारोंपर ममत्व है, इसलिए आम तौर पर उनका लाभ जितने लोग ले सकें, उतने लोगोंको उनका लाभ लेनेका अवसर देनेकी इच्छा होती है। इस प्रकार इसे छपवानेमें अभी तो मैं भी प्रेरक हूँ। ऐसी स्थितिमें प्रस्तावनाकी जरूरत ही क्या है? मेरा आचरण ही शुद्ध प्रस्तावना है। जो पढ़ सकते हैं पढ़कर देख लेंगे।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

८७. पत्र : राजस्व सचिवको

मोतीहारी
जनवरी २४, १९१८[१]

सेवामें

सचिव
राजस्व-विभाग
बिहार और उड़ीसा सरकार

महोदय,

माननीय रायबहादुर पूर्णेन्दुनारायण सिंहको[२] चम्पारन कृषि-विधेयकके सम्बन्धमें जो कागजात दिये गये थे वे उन्होंने मुझे उपलब्ध कर दिये हैं। मैं देखता हूँ कि उनमें एक स्मृतिपत्र है जो बिहार बागान-मालिक संघ, चम्पारनके सदस्योंने दिया है[३], उसके साथ सिरनी संस्थानके प्रबन्धकोंका भेजा हुआ एक और स्मृतिपत्र भी है। प्रवर-समितिके विचारके लिए इन ज्ञापनों तथा कुछ अन्य पत्रोंका उत्तर देना आवश्यक है।

किन्तु अपने विचार व्यक्त करनेसे पहले मैं यह निवेदन करना चाहता हूँ कि यदि सरकार विधेयकमें कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करना ही चाहती है तो किसानोंका एक प्रतिनिधि परिषद् में नियुक्त किया जाना चाहिए और प्रवर-समितिमें भी रहना चाहिए। और मैं महसूस करता हूँ कि बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद या मेरे सिवा दूसरा कोई व्यक्ति ऐसा नहीं कि जो इन हितोंका भलीभाँति प्रतिनिधित्व कर सके। मैं आशा करता हूँ कि मेरी इस प्रार्थनापर सरकार उचित ध्यान देगी।

विधेयकके उपबन्धोंपर विचार करते हुए मेरी नम्र रायमें सभी सम्बन्धित लोगोंके लिए यह स्मरण रखना अत्यन्त आवश्यक है कि सरकारने समितिकी सिफारिशोंपर

 
  1. मूल प्रतिमें सन् १९१७ है जो स्पष्टत: छपाईकी भूल है।
  2. बिहार और उड़ीसा विधान परिषद्के सदस्य। वे उस प्रवर समितिके सदस्य भी थे जिसे चम्पारन कृषि-विधेयक विचारके लिए सौंपा गया था।
  3. ५ जनवरीको या उसके आसपास। देखिए परिशिष्ट १०।