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पत्र : डी॰ जे॰ रीडको

नहीं होगा कि जिन किसानोंको लगान चुकानेके लिए कर्ज लेना पड़ता हो या अपने मवेशी बेचने पड़ते हों, वे लगान न दें। सरकार जो चाहे सो करे। यदि लोगोंके कष्ट वास्तविक होंगे और काम करनेवाले होशियार होंगे, तो जीत होगी ही।

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १

७८. पत्र : डी॰ जे॰ रीडको

मोतीहारी
जनवरी १७, १९१८

प्रिय श्री रीड,[१]

जब मैं आपके साथ काम कर रहा था, उन दिनों मुझे नहीं मालूम था कि आपके लिए समितिमें होनेका क्या अर्थ है। मुझे अब मालूम हुआ कि आपने अपने सिर कैसा खतरा ले रखा था। मैं आपसे सहानुभूति नहीं प्रकट करता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि सर्वश्री इर्विन और जेम्सनके नेतृत्वमें मिथ्या आरोप लगानेका जो एक आंदोलन-सा चला हुआ है, उसका आपपर कोई असर नहीं हुआ है। ईमानदारीके साथ काम करने की इच्छा रखनेवाले लोक-सेवी व्यक्ति केवल अपने अन्तःकरणकी सम्मतिपर ही विश्वास कर सकते हैं। कोई अन्य प्रमाण उनके लिए कुछ भी अर्थ नहीं रखता। आप जिस आगसे होकर गुजर रहे हैं, ईश्वर आपको उसे सहने की शक्ति प्रदान करे।

आशा है, लंकामें आपका समय अच्छी तरह कटा होगा।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

फोटो-नकल (सी॰ डब्ल्यू॰ ४४४७) से।

 
  1. बिहार बागान-मालिक संघके जनरल सेक्रेटरी तथा बिहार और उड़ीसा विधान परिषदके सदस्य; उन्होंने उत्पादन-कार्यमें लगे श्रमिकोंके प्रश्नकी जाँच-पड़तालके लिए १६ जून, १९१७ को नियुक्त चम्पारन जाँच-समितिमें काम किया था।