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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

नहीं, लेकिन इस विषयका विस्तारसे उल्लेख करके मैंने अपना जी हलका कर लिया। मुझमें यदि पूरा जोश-खरोश होता तो मैं घाटपर जानेवाली गलीके नुक्कड़पर खड़ा होकर हर स्त्री-पुरुषको धर्मके नामपर ईश्वरको लांछित करनेसे रोकता।

प्रादेशिक भाषाओंके सम्बन्धमें आपका पत्र इसलिए लौटा रहा हूँ कि स्ममरण रखने में आपको सहायता मिले।

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे
सौजन्य : नारायण देसाई

७७. तार : गुजरात-सभाको[१]

[मोतीहारी
जनवरी १६, १९१८ के बाद]


श्री पारेख और श्री पटेलको,[२] जिन्होंने मौकेपर पहुँच कर जाँच की है, दृष्टान्तों और दलीलोंके साथ विश्वासके योग्य जवाब देना चाहिए। स्वतन्त्र जाँचके लिए आग्रह करें। आन्दोलन प्रजाने आरम्भ किया है—और आपको यह साबित करना चाहिए कि सर्वश्री पारेख और पटेल तथा गुजरात सभा जनताके अनुरोध पर इसमें पड़े हैं। यह सलाह देनेमें मुझे कोई संकोच

 
  1. गुजरात-सभाने १० जनवरीको खेड़ा जिलेके किसानोंको फसल खराब होनेके कारण लगान न देनेकी सलाह दी थी। इस सलाहकी आलोचना करते हुए खेड़ा जिलेके कलक्टरने अपने १४ जनवरीके वक्तव्यमें कहा कि "कलक्टरको लगान वसूल करने या मुलतवी रखनेका पूरा अधिकार है; मैंने अपने अन्तिम आदेश जिलेकी फसलके बारेमें पूरी जाँच-पड़ताल करनेके बाद ही जारी किये थे। जिलेके जिन कुछ गाँवोंमें मुझे राहत देना आवश्यक जान पड़ा, उनके सम्बन्धमें मैंने लगानके एक हिस्सेकी वसूली मुलतवी रखनेके हुक्म जारी कर दिये हैं। इसलिए अब काश्तकारोंको लगान और तकावीकी बकाया रकम अदा कर देनी चाहिए। लेकिन अगर इतनेपर भी कोई काश्तकार गलत सलाह देनेवालोंके बहकावेमें आकर लगान देनेसे इनकार करता है तो मुझे उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करनेको मजबूर होना पड़ेगा।" कलक्टरके इस वक्तव्यके बाद बम्बई सरकारने १८ जनवरी, १९१८ को एक वक्तव्य निकाला जिसमें कलक्टरकी कार्रवाईका समर्थन किया गया था। साथ ही उसमें खेड़ाके काश्तकारोंको सलाह देनेके सम्बन्धमें अहमदाबादकी गुजरात-सभाके हस्तक्षेप करनेके अधिकार (लोकस स्टैंडी) की वैधतामें भी सन्देह व्यक्त किया गया था, और सभाकी इस कार्रवाईको "विचारहीन और शरारत-भरी" बताते हुए कहा गया था कि सरकार इस "धन-धान्यसे पूर्ण और उपजाऊ जिले" में "लगान-वसूलीके स्वाभाविक कार्यमें किसी प्रकारका हस्तक्षेप" बरदाश्त नहीं करेगी। गांधीजीने तार द्वारा इसी वक्तव्यके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होनेपर यह तार भेजा था।
  2. गोकुलदास पारेख और विट्ठलभाई पटेल; इन दोनोंने १२ दिसम्बरको नडियाद जाकर कपड़वंज और ठासरा ताल्लुकोंके कोई २० गाँवोंका निरीक्षण किया था और मौकेपर पहुँचकर समस्याका अध्ययन करनेके बाद इन्होंने गुजरात-सभाके सामने एक रिपोर्ट पेश की थी।