हम आपसमें लड़ते-झगड़ते हैं। हममें और इस जातिके लोगोंमें क्या अन्तर है? उनके भीतर भी वैसा ही हृदय है, उनकी भी वैसी ही नाक है, वैसी ही जीभ है और उनकी भावनाएँ भी वैसी ही हैं। वे सभी बातोंमें तो मिलते-जुलते हैं। (हर्ष-ध्वनि)। जहाँ हृदयोंमें अन्तर होता है वहाँ भगवान् रामचन्द्रका वास नहीं हो सकता। वहाँ इमाम भी नहीं होते। (हँसी)। ईश्वर राजनीतिक परिषद् में था, ऐसा मेरा खयाल नहीं है। (हँसी)। किन्तु मुझे विश्वास है कि वह यहाँ अवश्य है। (हर्ष-ध्वनि)। मैं यहाँ कोई लम्बा भाषण देनेके लिए नहीं आया हूँ। मैं तो यहाँ एक पदार्थ-पाठ सिखाने आया हूँ। (हर्ष-ध्वनि)। समाज-सुधारके सम्बन्धमें यह पदार्थ-पाठ अन्यत्र नहीं मिलेगा। (हर्ष-ध्वनि)। यहाँ बहुत बड़ा जनसमुदाय इकट्ठा है। यह एक महासागरके समान है। कोई भी इस पानीको अपना भात पकानेके काममें ला सकता है। (हँसी)। सभी बोलें। अब मैं माननीय श्री पटेलसे भाषण देनेकी प्रार्थना करता हूँ। (जोरकी हर्ष-ध्वनि)
इसके बाद एक ढेढ युवकने बोलनको अनुमति माँगी। वह बहुत घबराया हुआ-सा आगे बढ़ा। उसने कहा, मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ। मैं ढेढका बेटा हूँ। मैं अपनी जातिकी ओरसे इस जन-समुदायको धन्यवाद देता हूँ और बाबाजी (श्री पटेल) के प्रति प्रेम और कृतज्ञताकी यह श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उसमें धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ा और उसने अपनी जातिके इस दावेको पुष्ट करनेका प्रयत्न किया कि ढेढोंका स्थान राजपूत जातियों में अग्रिम है।
श्री गांधी उसका भ्रम-निवारण करनेके लिए एक बार फिर खड़े हुए। उन्होंने उसे यह सलाह दी कि वह अपने वंशके मूलके सम्बन्धमें ऐसी बेसिर-पैरकी बातोंपर विश्वास न करे। उन्होंने ढेढोंको भी सलाह दी कि वे अपने उद्भवके सम्बन्धमें सन्तोष करें और अपने प्रयत्नोंसे ऊँचे बनें, क्योंकि अब उन्हें उच्च वर्गोंने भी ममतापूर्वक सहारा दिया है।
इसके बाद अन्य वक्ताओंके भाषण हुए और उन सभीने ढेढ जातिको सान्त्वना देने और प्रोत्साहित करनेका प्रयत्न किया....। श्री गांधीने अन्तमें भाषण देते हुए कहा कि उच्च वर्ग ढेढोंके प्रति अपनी शाब्दिक सहानुभूतिको व्यवहारिक रूप दें और ढेढोंके बच्चोंके लिए एक स्कूल खोलने और चलानेके लिए चन्दा दें। उनकी अपीलपर १६५३ रुपये तत्काल इकट्ठे हो गये।[१]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१७
- ↑ इसके बाद गांधीजीको और अन्य लोगोंको माला पहनाई गई और सभा "गांधीजीकी जय" के नारे लगाती हुई विसर्जित हो गई।