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परिशिष्ट

पारिश्रमिककी स्थानीय दरपर प्राप्त किया जाना चाहिए । यद्यपि हमारे लिए सभी प्रकारके श्रमोंके लिए उचित दरें निर्धारित करना स्पष्टतः असम्भव ही है, किन्तु हमारा विचार है कि यदि बिहार बागान मालिक संघ स्थानीय बाजार दरोंके हिसाबसे पारिश्रमिकका एक निम्नतम मान निर्धारित कर दे और अपने सदस्य-संस्थानोंपर उसी दरसे पारिश्रमिक देनेका बन्धन लगा दे तो यह व्यवस्था उसके लिए लाभदायक रहेगी। हम मानते हैं कि ऐसा करनेसे व्यवहार-रूपमें निम्नतम दरके ही अधिकतम मान लिये जानेकी आशंका है, किन्तु पारिश्रमिककी दरें धीरे-धीरे बदलती हैं और इस प्रस्तावको अंगीकार कर लेनेसे संघ कमसे-कम यह तो जान सकेगा कि कोई संस्थान स्पष्टतया अपर्याप्त पारिश्रमिक तो नहीं दे रहा है, और इस प्रकार वह उसपर अधिक अच्छा नियन्त्रण रख सकेगा। इसलिए हम सिफारिश करते हैं कि सारा श्रम विशुद्ध रूपसे श्रमिककी इच्छासे प्राप्त श्रम हो तथा उसके लिए स्थानीय बाजार दरपर पारिश्रमिक दिया जाये; और इस क्षेत्रके कमिश्नरकी स्वीकृतिसे संघ स्थानीय बाजार दरोंके आधार- पर पारिश्रमिकका एक निम्नतम मान स्थापित कर दे तथा इस मानमें स्थानीय दरोंके अनुसार समय-समयपर परिवर्तन किया जाये।

गाड़ी-साटा

२२. श्रमके सवालसे ही सम्बन्धित है बैल-गाड़ियोंकी जरूरत पूरी करनेका सवाल। अधिकांश नील फैक्टरियोंको वर्षके कुछ खास मौसमोंमें नीलकी फसलको फैक्टरियोंमें ले जाने और कूड़े-कर्कटको खेतोंमें फेंकनेके लिए बहुत-सी गाड़ियोंकी जरूरत होती है। अधिकांश फैक्टरियाँ पूरे साल अपनी साधारण जरूरतोंको पूरा करनेकी दृष्टिसे पर्याप्त गाड़ियाँ रखती हैं, किन्तु उक्त विशेष अवसरोंके लिए जरूरी अतिरिक्त गाड़ियाँ किरायेपर ले लेती हैं। गाड़ियोंकी जरूरत नियमित रूपसे पूरी होती रहे, इसलिए गाड़ीवानके साथ साटा किया जाता है। इस साटेके अनुसार गाड़ीवानोंको एक निश्चित वर्षावधि-तक कुछ विशेष अवसरोंपर अपने गाड़ी बैल देने पड़ते हैं, और इस साटेको ध्यानमें रखकर प्रायः निरपवाद रूपसे गाड़ीवानोंको एक पेशगी रकम दे दी जाती है, जो कुछ मामलोंमें इतनी बड़ी भी हुआ करती है कि उससे गाड़ी और बैलकी एक जोड़ी खरीदी जा सके। किन्तु, आम तौरपर पेशगी रकम ३०-४० रुपये ही हुआ करती है। हम यह मानते हैं कि इस उद्योगके लिए इस प्रकारके अनुबन्ध आवश्यक हैं और यदि भाड़ा उचित दिया जाये तथा अनुबन्धकी अवधि लम्बी न हो तो इस प्रणालीके विरुद्ध कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। किन्तु, इन अनुबन्धोंकी अवधि――जो कभी-कभी बीस वर्ष भी हुआ करती है――गाड़ीवानोंके हितोंके लिए बाधक है। हमारी सिफारिश है कि ५० रुपये तककी पेशगी रकमवाले अनुबन्धोंकी अवधि तीन साल सीमित कर दी जाये, और जब पेशगी रकम ५० रुपयेसे अधिक हो तब उस अवधिकी अधिकतम सीमा पाँच साल निर्धारित कर दी जाये, और यह भी कि बागान मालिक संघ अपने सदस्योंपर इस आशयका एक उपनियम लागू करे।