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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

डर रहता है। दूसरी ओर यह खतरा है कि सारे पेड़ काश्तकारोंको सौंप देनेका परिणाम यह भी हो सकता है कि जल्द ही उन सबका खात्मा हो जाये। इसलिए जिलेमें पेड़ काफी हैं, और कहा जाता है कि सारनमें, जहाँ काश्तकार जिस जमीनका लगान देते हैं उसपर खड़े पेड़ोंपर उन्हें पूरा अधिकार प्राप्त है, भूमिको वृक्ष-शून्य बना देनेकी प्रवृत्तिका कोई चिह्न दिखाई नहीं देता। मौजूदा दस्तूरसे होनेवाली असुविधाओंको ध्यानमें रखते हुए हम सिफारिश करते हैं कि बेतिया राजमें काश्तकारोंके सामने लकड़ीमें जमींदारोंका आधा हिस्सा खरीद लेनेका विकल्प रखा जाये। पेड़ोंका मूल्य- निर्धारण उचित सिद्धान्तोंपर हो। जहाँ विवाद हो वहाँ मामला निर्धारक (असेसर) के सुपुर्द कर दिया जाये। यदि व्यवहारमें यह पाया जाये कि क्षेत्र-विशेषसे खरीदके लिए अर्जियाँ इतनी अधिक संख्यामें आ रही हैं कि भूमिको अनुचित रूपसे वृक्ष-शून्य कर देनेकी सम्भावना दिखाई देती है तो राज इस विकल्पको सीमित कर दे।

चरागाह सम्बन्धी अधिकार

२०. जाँचके दौरान हमने पाया कि लगभग सारी परती जमीन निरपवाद रूपसे जमींदारोंकी सम्पत्तिके तौरपर दर्ज है। अपवाद जमीनके वे कुछ थोड़े-से टुकड़े ही हैं जो सड़कों, कब्रगाहों तथा खलिहानों आदिके रूपमें सामूहिक उद्देश्योंके लिए उपयोगमें लाये जाते हैं। और इस प्रकार जमींदारको सारी परती जमीन आबाद करने या अपने निजी उपयोगके लिए घेर रखनेका अधिकार मिल जाता है। लोगोंका कहना है कि यह ग्रामीण समुदायके हितके मार्गमें बाधक है, और इससे जमींदारके हाथमें एक ऐसा हथियार आ जाता है कि अगर वह दुष्ट हुआ तो अपने काश्तकारोंके साथ कोई विवाद होनेपर उसका उपयोग उनके खिलाफ कर सकता है। इस सम्बन्धमें सन्देहकी कोई गुंजाइश नहीं कि सामुदायिक उपयोगके लिए कुछ जमीन छोड़ देनेसे गाँवको बड़ा लाभ होता है। यह जरूरी नहीं कि वह टुकड़ा इतना विस्तृत हो कि गाँव-भरके जानवर उसमें चर सकें, लेकिन उसे इतना बड़ा तो होना ही चाहिए कि उसमें वे निर्बन्ध रूपसे घूम-फिर सकें और आबाद जमीनोंमें उनके जानेका भी भय न रहे। इसलिए हम सिफारिश करते हैं कि मालिकों तथा स्थायी पट्टेदारोंको उपर्युक्त ढंगके सामुदायिक उपयोगके लिए हर गाँवमें जमीनका एक टुकड़ा रख छोड़नेकी सलाह दी जाये। कोर्ट ऑफ वार्ड्सके सीधे प्रबन्धके अन्तर्गत आनेवाले गाँवोंके बारेमें हमारी सिफारिश है कि उनमें कोर्ट ऑफ वार्ड्सकी ओरसे ही यह व्यवस्था की जाये, और उसके अन्तर्गत आनेवाले गाँवोंमें हर पट्टको नया करनेके पूर्व समुचित जाँच-पड़ताल करके इस प्रकारका आरक्षण किया जाये और ऐसी आरक्षणकी शर्तें पट्टमें ही शामिल कर ली जायें।

श्रम

२१. काश्तकारोंने हमारे पास शिकायत की है कि उनके श्रमके एवजमें जमींदार जो पारिश्रमिक देते हैं, वह अपर्याप्त होता है। किसी भी जमींदारने हमारे सामने काश्तकारोंके श्रम, हल या गाड़ीपर किसी प्रकारका दावा पेश नहीं किया, और यह स्वीकार किया जाता है कि सभी प्रकारका श्रम श्रमिकोंकी इच्छाके अनुसार तथा