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परिशिष्ट

लिया और कुछ ऐसे चमार थे जिन्होंने एक-एक गाँवकी सीमा तक यह अधिकार प्राप्त किया। इस स्रोतसे राजाकी कुल सालाना आमदनी ३,००० रुपये है। अन्य आय-स्रोतोंके साथ चमड़ा-सम्बन्धी अधिकार भी उन नील कोठियोंको हस्तान्तरित कर दिया गया, जिन्हें १८८७ में मुकर्ररी पट्टे दिये गये। रामनगर राजमें पिछले दो वर्षोंमें इस महालसे ७९,००० रुपयेकी आमदनी हुई है। बेतिया राजके प्रबन्धकने इस दावेको दस्तूरके आधारपर उचित ठहरानेकी कोशिश की है और वह जनहितके नामपर भी इसका समर्थन करता है; उसका कहना है कि इससे पशुओंको जहर खिलाकर मार डालनेकी आशंका कम हो जाती है। दूसरी ओर यह कहा जाता है कि चमड़ेपर मृत जानवरके मालिकका कानूनी अधिकार है; पहले चमारोंको मृत पशुओंका चमड़ा उतार देनेके बदले परती जमीनका उपयोग करने दिया जाता था। दस्तूरके आधारपर ऐसे अधिकारका औचित्य सिद्ध करनेका सवाल तो अदालतके द्वारा निबटाया जाना चाहिए। किन्तु, हमें इस बातमें सन्देह है कि जहाँ ऐसे दस्तूरको सिद्ध कर दिया जाये, वहाँ भी उसकी रूसे मृत पशुके मालिकका चमड़ेपर प्रकृत अधिकार छीना जा सकता है। इसलिए हमारा विचार है कि यदि जमींदारोंको कोई कानूनी अधिकार प्राप्त हो तो उसका खयाल रखते हुए, चमड़ा मृत पशुके स्वामीकी सम्पत्ति है, और उसे यह अधिकार है कि वह चमड़ेको चाहे कीमत लेकर बेच दे या किसी प्रकारकी सेवाके बदले किसीको दे दे।

मिट्टीके तेलका एकाधिकार

१८. कुछ इसीसे मिलता-जुलता मिट्टीके तेलके व्यापारपर एकाधिकारका दावा था। बेतिया राजने यह दावा वापस ले लिया है और हमारा खयाल है कि अब मुकर्ररीदारोंको भी चाहिए कि वे मिट्टीका तेल बेचनेके लिए जो परवाने जारी करते आ रहे हैं, उस चलनको समाप्त कर दें, क्योंकि वे भी तो अपने दावे राजसे ही प्राप्त करते हैं। इस चलनको स्पष्टतः कानूनी तौरपर लागू नहीं किया जा सकता और इससे व्यापारमें रुकावट पड़ती है।

पेड़ोंपर अधिकार

१९. पेड़ सम्बन्धी अधिकारको लेकर काश्तकारोंके बीच बहुत जबरदस्त असन्तोष देखने में आता है। कानूनी स्थिति १८९२-९९ के बन्दोबस्तमें भी निर्धारित कर दी गई है और मौजूदा दूसरे बन्दोबस्त में भी। ऐसा लगता है कि काश्तकार अपनी जोतोंमें खड़े पेड़ोंको भी जमींदारोंकी स्वीकृतिके बिना काट नहीं सकते, और सूखे अथवा काटे गये पेड़की आधी कीमतपर जमींदारका हक है। काश्तकारका कहना है कि वह जमीनके लिए लगान चुकाता है तो पेड़-सहित उसके सारे उत्पादनोंपर उसका अधिकार होना चाहिए। किन्तु दूसरी ओर, लगान दस्तूरका खयाल रखते हुए निर्धारित किया गया था; और फिर जमींदारको एक कानूनी अधिकार तो है ही। काश्तकार निःसन्देह इस बन्दिशको बहुत महसूस करता है कि वह चाहनेपर भी अपनी ही जोतसे जमींदारकी अनुमति के बिना लकड़ी नहीं ले सकता; उसे इससे जमींदारके अमलों द्वारा दुर्व्यवहारका