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परिशिष्ट

व्याह हो रहा हो तो उसके लिए――यदा-कदा, लेकिन यदा-कदा ही, कुछ वसूली की गई है।

जिलेके पश्चिमोत्तर हिस्सेमें इस प्रकारकी आम गैर-कानूनी वसूली चलती ही रही है; फिर भी इस तथ्यके बावजूद कि बंगाल काश्तकारी कानूनके खण्ड ७५ में ऐसे मामलोंमें कानूनी प्रतिकारकी व्यवस्था है, इसके अन्तर्गत कोई मुकदमा दायर नहीं किया गया है। कलक्टरका विचार है कि यह खण्ड एक निष्प्रयोजन नियमके रूपमें ही पड़ा रह गया, क्योंकि काश्तकारोंने कोई शिकायत नहीं की और वैसे भी इस कानूनको लागू करनेमें बड़ी कठिनाइयाँ हैं। हमसे कहा गया कि खण्ड ७५ को इस प्रकार संशोधित कर दिया जाये जिससे कलक्टरको, खण्ड ५८ की तरह ही इसके अन्तर्गत भी मामलोंको सरसरी तौरपर निबटा देनेका अधिकार प्राप्त हो जाये। और हम इस बात से सहमत हैं कि चम्पारन जिलेमें मौजूद विलक्षण परिस्थितियोंका सामना करनेके लिए किसी विशेष उपायकी आवश्यकता है। हम यह भी मानते हैं कि इस बातको जरा और भी विस्तृत रूपसे प्रचारित कर दिया जाये कि अबवाबकी वसूली गैर-कानूनी है। इसी वसूलीके साथ दस्तूरी नामसे ज्ञात एक और उगाही प्रचलित है, जो उतनी ही गैर-कानूनी है। इसके अन्तर्गत जमींदारोंके नौकर काश्तकारों द्वारा अदा की गई रकमपर ऊपरसे एक बट्टा लेते हैं। अतः, हमारी सिफारिश है कि:

(१) सरकार एक राजघोषणा जारी करके जमींदारों और काश्तकारोंको सूचित कर दे कि अबवाब और जमींदारोंके नौकरों द्वारा वसूली जानेवाली दस्तूरी, दोनों गैर-कानूनी हैं, और उनकी वसूली बन्द कर देनी है;
(२) कोर्ट ऑफ वार्ड्सको अपने अधिकार क्षेत्रमें आनेवाले राजोंमें इन निषेधाज्ञाओंको लागू करना चाहिए; और
(३) हमने चम्पारन जिलेके लिए जो विशिष्ट कानून बनानेकी सिफारिश की है, उसमें एक धारा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें व्यवस्था की जाये कि यदि कलक्टर चाहे तो अपनी ही इच्छासे किसी जमींदार द्वारा काश्तकारोंसे देय लगानके अतिरिक्त कोई रकम वसूलनेकी कार्रवाईकी जाँच करके सजा दे सकता है, और उसके निर्णयपर साधारण अपील की जा सकेगी। जुर्मानेकी रकम अधिकसे-अधिक ५० रुपये तय करना उचित होगा, लेकिन अगर काश्तकारसे वसूली गई अतिरिक्त रकमका दुगुना ५० रुपयेसे अधिक हो तो इस दुगुनी रकमपर जुर्माना तय किया जाये। हमारे सहयोगी माननीय राजा कीर्त्यानन्द सिंह कानून बनानेसे सम्बन्धित इस प्रस्तावसे असहमति व्यक्त करते हैं।

लगानकी रसीद

१४. जहाँ अबवाब नियमित रूपसे लिये जाते हैं, वहाँ प्रचलन यह है कि काश्तकार द्वारा चुकाई गई पहली किश्तकी रकम अबवाबकी माँग खाते जमा कर ली जाती है और उसे तबतक कोई रसीद नहीं दी जाती जबतक कि काश्तकार पूरे अबवाब और लगानका कमसे-कम कुछ हिस्सा चुका नहीं देता। यह प्रचलन इस कारणसे और