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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुसार नीलकी खेतीको किसान नापसन्द करते रहे हैं और सदा उससे मुक्त होनेके लिए तैयार रहे हैं। बाध्यताकी इस शर्तका कोई कानूनी आधार है या नहीं, यह निर्णय करना कानूनी पंच-न्यायालयका काम है; किन्तु यह लोगोंमें अप्रिय है, यह इसी बातसे सिद्ध हो जाता है कि इन बरसोंमें बहुतसे किसानोंने रुपया देकर नीलकी खेतीसे अपना पिण्ड छुड़ाया है। जिलेमें भविष्यमें शान्ति रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि जमींदार और किसानके सम्बन्ध कानूनमें निश्चित रूपसे बता दिये जायें और नीलकी खेती बाध्यताकी भावना या किसी परम्परागत अधिकारसे जुड़ी हुई न रहे।

तिन-कठिया प्रथाको रद करनेका सुझाव

७. इसलिए हम देखते हैं कि तिन-कठिया प्रथा किसानोंमें अप्रिय है। वे इसे लाभप्रद नहीं समझते; उसमें कुछ मूलभूत दोष हैं और वह आधुनिक अवस्थाओंमें जमींदारों और किसानोंके जो सम्बन्ध होने चाहिए उनसे मेल नहीं खाती। इसलिए हम सिफारिश करते हैं कि चम्पारनमें नीलकी खेती करनेकी यह प्रथा बिलकुल उठा दी जाये और इस किस्मका फेरफार करनेके लिए कानून बनाया जाये। इसका असर उन पट्टोंपर पड़ेगा जिनमें अधिकार-सूची (रेकर्ड ऑफ राइट्स) में पट्टेदारीकी अनिवार्य शर्तके तौरपर नील बोना दर्ज है; इस मुद्देके सम्बन्धमें एक सिफारिश बादमें अलग अनुच्छेदमें की जायेगी।

नीलकी खेतीकी भावी प्रथा

८. निस्सन्देह हम यह नहीं चाहते कि नील बोना बन्द कर दिया जाये, बल्कि यह चाहते हैं कि वह न्यायपूर्ण और उचित शर्तोपर बोया जाये। इस समय भी कुछ कोठीदार ऐच्छिक प्रथा (खुश्की) के अन्तर्गत नीलकी खेती करा रहे हैं और हमारा खयाल है कि भविष्यमें केवल यही प्रथा जारी रहने दी जानी चाहिए। ऐच्छिक प्रथाकी मुख्य विशेषताएँ ये होनी चाहिए:

(१) किसान करार करने या न करनेके लिए बिलकुल स्वतन्त्र होने चाहिए।
(२) नील बोनेके लिए कोई खेत चुनना पूर्णतः किसानोंकी मर्जीपर छोड़ दिया जाना चाहिए।
(३) नीलके जो दाम दिये जायें वे ऐच्छिक समझौतेसे, पूर्ण व्यापारिक आधारपर तय किये जान चाहिए।
(४) दाम उपजकी तोलपर नियत किये जाने चाहिए, किन्तु यह तोल दोनों पक्ष राजी हों तो, वस्तुत: तोलनेके बजाय चुने हुए पंच द्वारा कूतकर तय कराई जा सकती है।
(५) करारकी अवधिको कम रखनेपर जोर होना चाहिए और यह अवधि तीन बरससे ज्यादा की न हो।

हम इस पिछली शर्तको महत्त्वपूर्ण मानते हैं। किसानों के हितकी दृष्टिसे हम नहीं मानते कि उनको अपने जमींदारोंके साथ बरसों पहले नियत किये दामोंपर किसी फसल विशेषको उगानेके लिए बँध जाने दिया जाये। यह स्पष्ट है कि हम जिस