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परिशिष्ट

 

इस नोटिसके साथ कमिश्नरके पत्रकी एक प्रति संलग्न थी, जो इस प्रकार थी:

मुजफ्फरपुर
अप्रैल १३, १९१७

सेवामें――

चम्पारनके जिला मजिस्ट्रेट

महोदय,

श्री मो० क० गांधी, जैसा कि वे स्वयं कहते हैं, नीलके खेतोंमें काम करनेवाले भारतीय मजदूर जिन परिस्थितियोंमें काम करते हैं, उनकी जाँच करनेके लिए जनताके बार-बार बुलाये जानेपर यहाँ आये हैं और वे स्थानीय प्रशासनकी सहायता चाहते हैं। वे आज सुबह मुझसे मिलने आये थे। मैंने उनको समझाया था कि प्रशासन उन्नीसवीं सदीके सातवें दशकसे ही निलहे जमींदारों और काश्तकारोंके सम्बन्धोंपर नजर रखता आ रहा है और अभी इस समय हम, चम्पारनमें यह समस्या जिस रूपमें मौजूद है, उसके एक पहलूके सम्बन्धमें खास तौरसे चिन्तित हैं; परन्तु यह एक सन्देहास्पद बात है कि ऐसे समय, जब हम समस्याको हल करनेकी कोशिशमें हैं, बीचमें ही किसी अजनबी द्वारा हस्तक्षेप करनेसे उलझन बढ़ नहीं जायेगी। मैंने उनको चम्पारनमें दंगोंकी आशंकाका भी आभास दिया; उनसे कहा कि वे इस बातका प्रमाण दें कि जनताने उनसे जाँच करनेके लिए बार-बार कहा है और बताया कि इस मामलेके बारेमें शायद सरकारको लिखना पड़े।

मुझे आशा थी कि श्री गांधी चम्पारंनके लिए रवाना होनेसे पहले मुझे फिर लिखेंगे, परन्तु हमारी मुलाकातके बाद मुझे सूचित किया गया है कि उनका उद्देश्य सही जानकारी हासिल करनेके बजाय शायद आन्दोलन करना ही अधिक है और सम्भव है कि वे आगे कुछ लिखा-पढ़ी किये बिना ही कार्रवाई शुरू कर दें। मेरा खयाल है कि यदि वे आपके जिलेमें गये तो वहाँ सार्वजनिक शान्तिके भंग होनेका खतरा है। आपसे मेरा अनुरोध है कि यदि वे वहाँ पहुँचें तो आप उनको दण्ड प्रक्रिया संहिताकी धारा १४४ के अन्तर्गत एक आदेश द्वारा तुरन्त जिला छोड़ देनेका आदेश दे दें।

आपका,
एल० एफ० मॉर्सहेड
कमिश्नर तिरहुत डिवीजन

[अंग्रेजीसे]

सत्याग्रह इन चम्पारन, पृष्ठ १०७-८; और सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, संख्या १९, पृष्ठ ६१-२।