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परिशिष्ट

मुझे इसके बावजूद श्री गांधीको मनमानी करने देना था। यदि मैं चुप रहती तो हस्तक्षेप सम्भवतः अधिक सख्त होता; मैं इसीको टालना चाहती थी और मेरा हस्तक्षेप इस तरह ममतासे उद्भूत था। मुझे इस बातकी प्रसन्नता है कि श्री गांधी जो कहना चाहते थे वह उन्होंने स्वयं स्पष्ट कर दिया है। किन्तु उन्होंने मेरे सम्बन्धमें जो गलत-बयानी की है, उसका मुझे दुःख है।

यहाँ श्री एस० एस० सेटलुरका पत्र भी ‘हिन्दू’ से लेकर दिया जा रहा है। इससे उस घटनाका ठीक-ठीक विवरण मिल जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
न्यू इंडिया, १७-२-१९१६

[१]

जिन लोगोंने श्री गांधीका अपने भाषणके सम्बन्धमें वक्तव्य और जिन बातोंपर मुझे आपत्ति हुई थी उनको बताने के सम्बन्धमें मुझसे की गई उनकी प्रार्थनाको देखा है वे तुरन्त यह स्वीकार कर लेंगे कि उनपर असद्भावका दोषारोपण तो बिलकुल नहीं किया जा सकता।

...मैंने दूसरोंके अनुरोधसे जो कुछ कहनेसे इनकार कर दिया था, श्री गांधीने चूँकि मुझसे उसे प्रकट कर देनेकी प्रार्थना की है, मैं विवश हूँ और अब कह सकती हूँ कि वही शब्द जो किसी दूसरे व्यक्तिके मुँहसे निकलते तो गलत असर डालते, श्री गांधीकी भावनाकी हद तक निरापद क्यों हैं। इसके अतिरिक्त, वे यह नहीं जानते थे जैसा कि मैं जानती थी, कि उनके सम्मुख जो छात्र बैठे थे, वे खुफिया पुलिसके अफसरोंने उनके साथ जो व्यवहार किया था उसके कारण क्रोधसे भभक रहे थे। कुछ छात्र उस दिन कॉलेजमें नजरबन्द कर दिये गये थे। उनका यह अपमान अकारण और उत्तेजनात्मक था। पिछले कुछ दिनोंमें नगरके प्रतिष्ठित लोग जिस तरह गिरफ्तार किये गये थे और कुछ पुरुषों एवं कुछ वृद्धा स्त्रियों तकसे जिस तरह निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया था, वे उसके कारण भी नाराज थे। सभामें श्रोतागण भड़क सकते थे और मुझे भय था कि कुछ लोग, जो गांधीजीके सत्याग्रहके सिद्धान्तको नहीं जानते थे, उनके बमबाजीके परिणामोंके सम्बन्धमें कहे हुए शब्दोंका यह अर्थ भी निकाल सकते थे कि इन साधनोंका प्रयोग उचित है, भले ही उन्होंने उनकी निन्दामें कुछ भी कहा हो।

स्वयं उनके शब्दोंपर विचार करें तो मैं कहना चाहती हूँ कि श्री गांधीने अंग्रेजोंके भारतसे बाध्य होकर जानेके सम्बन्ध में जो कुछ कहा था, वह अबुद्धिमत्तापूर्ण था। किन्तु उसका अर्थ वह नहीं निकला जो मैं कहती तो निकलता, क्योंकि मैं स्वराज्य प्राप्तिके लिए सक्रिय कार्य कर रही हूँ। यदि वही बात मैंने कही होती, तो वह धमकीका रूप ले लेती, क्योंकि बहुतसे लोग उनका सम्बन्ध अपने मनमें स्वभावतः मेरी भारतको

  1. १. यह पत्रके सम्पादकीय स्तम्भोंमें श्रीमती एनी बेसेंटके नामसे “श्री गांधी के बचाव में” शीर्षक के साथ छापा गया था।
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