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४१६. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

रांची
सितम्बर ३०, [१९१७]

प्रिय श्री शास्त्रियर,

देखिए, जोरावर लोग भी धराशायी होने लगे। मैंने समझ रखा था कि मैं कभी बीमार न पड़ूंगा। परन्तु मैं शीत ज्वरसे पीड़ित हूँ; बुखार हर तीसरे दिन तीसरे पहर आ जाता है, अलबत्ता इसके कारण मेरे रोजमर्राके काममें बाधा नहीं पहुँच रही है। चार-पांच रोज पहले रेल यात्रियोंके बारेमें अपने उस पत्रमें[१] (जाने वह आपकी नजरसे गुजरा है या नहीं) जब में यह लिख रहा था कि उन हालतोंमें, यात्रियोंके बीमार पड़नेका डर है तब मुझे यह पता न था कि मैं स्वयं उसका शिकार होने जा रहा हूँ और सो भी पत्र भेजनेके एकदम बाद ही। आप चिन्ता न करें; मैं अपना इलाज स्वयं कर रहा हूँ। सम्भव है आपसे इलाहाबादमें मुलाकात हो। मैं “सम्भावनाकी बात” इस खयालसे लिख रहा हूँ कि हो सकता है [तबतक] यहाँ मेरा जाँच समिति-सम्बन्धी काम पूरा न हो पाये। बहुत लम्बी बातचीतके पश्चात् अब कहीं हम लोग सब मुद्दोंपर एकमत हो पाये हैं और रिपोर्ट सर्वसम्मत होगी।

हाँ, यह ठीक है कि गुजरात सभाने कार्यकर्त्ताओंका चुनाव कर लिया है। इस सभाकी आकांक्षा एक लाख हस्ताक्षर प्राप्त कर लेनेकी है। बम्बईमें होम रूल लीग इस कामको हाथमें लिय हुए है। श्रीमती बेसेंटका जो पत्र मुझे अभी-अभी मिला है, उससे मालूम हुआ है कि उनके कार्यकर्त्ता यही काम मद्रासमें कर रहे हैं। स्वयंसेवकोंके लिए पूरी-पूरी हिदायतें[२] तैयार कर ली गई हैं और ग्रामीणों तथा उन अन्य लोगोंको जिनसे हस्ताक्षर करनेको कहा जायेगा, कार्यक्रम समझानेकी दृष्टिसे उसका पूरा-पूरा अनुवाद कर लिया गया है। इस आयोजनके पीछे मन्शा यह है कि समस्त देश इस प्रार्थनापत्रको अपना प्रार्थनापत्र मान ले और इसलिए इसका अनुवाद भिन्न-भिन्न भाषाओं में किया जाना चाहिए। मूल मसविदा गुजरातीमें था। आपने उसका जो अंग्रेजी रूपान्तर पढ़ा है वह उसी मूलका अनुवाद है। जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मेरी निगाहमें उसका मूल्य केवल इतना है कि एक तो जनताको प्रशिक्षण मिलेगा और दूसरे, पढ़े-लिखे पुरुषों और शिक्षित स्त्रियोंको जनताके घनिष्ठ सम्पर्कमें आनेका अवसर प्राप्त होगा। पूरी उम्मीद है कि आप स्वस्थ होंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ६२९४) की फोटो-नकलसे।

  1. १. देखिए “पत्र: अखबारोंको”, २५-९-१९१७।
  2. २. देखिए “यंसेवकोंको निर्देश”, १३-९-१९१७ से पूर्वं।