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४१५. चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

रांची
सितम्बर २८, १९१७

रिपोर्टके ४ थे अध्यायपर चर्चा शुरू हुई। ... श्री गांधीने कहा कि उन्हें अध्यायके अनुच्छेदोंका सिलसिला पसन्द नहीं आया। उनका कहना था कि पहले दो अनुच्छेद छोड़ दिये जायें और उनकी जगह केवल इतना ही कह दिया जाये कि समितिकी जाँचके अनुसार कौन-कौनसे अबवाब वसूल हुए पाये गये हैं, इस रिवाजकी निन्दा की जाये और इस सम्बन्धमें समितिकी सिफारिशें दे दी जायें।

श्री इर्विन और नॉर्मनसे मिलनेके लिए क्या किया जाये, इसकी चर्चा हुई। ऐसा तय हुआ कि श्री रोड उनसे शनिवारके दिन मिलें और इसके बाद यदि जरूरी हो तो श्री गांधी उनसे रविवारके दिन मिलें। अगली बैठकके लिए सोमवारको प्रातःकालका समय निश्चित हुआ।

इस समझौतेमें [गोरे] जमींदारोंकी सद्भावना प्राप्त करनेकी सम्भावनाकी चर्चा करते हुए अध्यक्ष श्री गांधीसे पूछा कि चम्पारनके सम्बन्धमें उनका भावी कार्यक्रम क्या है। श्री गांधीने समितिको अपनी बात बताई। बातचीतके सिलसिलेमें श्री रोडने यह सवाल उठाया कि अगले वर्ष नीलकी फसलका क्या होगा। श्री गांधीने कहा कि अगर उसके लिए किसानोंको उचित कीमत दी गई तो वे किसानोंको नीलको खेती करने की सलाह देंगे। श्री रोडने कहा कि कीमतका यह सवाल पहली बार उठाया जा रहा है; समितिका पहला निर्णय था और श्री गांधी उससे सहमत थे कि सन् १९१७――१८ में नीलको खेती पुराने आधारपर ही की जाये ताकि जमींदारोंको अपनी पद्धति बदलनेके लिए पर्याप्त समय मिल सके।

श्री गांधीने कहा कि मेरा अभिप्राय यह था कि मैं किसानोंको नीलकी खेती करते रहनेकी सलाह तो दूंगा किन्तु उन पुरानी शर्तोंपर नहीं; क्योंकि वे किसानोंके लिए हानिकर हैं। किसान नीलकी खेती करते रहें इसके लिए वे अपने प्रभावका उपयोग करने के लिए तैयार हैं; किन्तु उन्हें वाजबी दाम मिलना चाहिए। अध्यक्षने पूछा कि क्या यह सम्भव है कि संघ द्वारा निर्धारित दरसे जमींदार कुछ प्रतिशत अधिक देनेके लिए राजी हो जायें और इस प्रकार यह वर्ष निकाल दिया जाये। श्री गांधीने कहा कि इस प्रस्ताव के आधारपर समझौता किया जा सकता है। श्री रोडने कहा कि जबतक में जमींदारोंसे सलाह-मशविरा नहीं कर लेता तबतक मैं यह प्रस्ताव मंजूर नहीं कर सकता। समितिको बैठक इसके बाद स्थगित हो गई।

[अंग्रेजी]
सिलॅक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १८५, पृष्ठ ३६६-७।