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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहींसे

और श्री बायनको[१] बुला भेजा जाये । मेरा खयाल है कि अगर दो कारखानेदारोंको सहमत किया जा सके तो पंच-फैसलेका मार्ग ठीक रहेगा। परन्तु, यदि केवल एक ही सहमत हो तो बेकार है। उन्होंने यह कहते हुए कि मान लिया जाये कि तुरकौलिया और पिपरा किसी समझौतेपर राजी हो गये हैं, पूछा कि क्या उस सूरतमें कमेटी इस बातकी सिफारिश करनेको तैयार है कि शेष तीन कारखानोंपर उसी प्रकारका समझौता कानूनन लाद दिया जाये――भले ही उनके मालिक राजी न हों? कमेटीने रजामन्दी प्रकट करते हुए कहा कि ऐसा किया जायेगा।

श्री रोडने यह प्रश्न उठाया कि तिन-कठियाका उन्मूलन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए या नहीं। श्री गांधीने कहा कि मेरी रायमें यद्यपि विधानसभा इसे स्वीकार न करेगी तथापि बहुत अधिक सम्भावना इस बातकी है कि रैयत स्वेच्छासे तिन कठिया उठाये जानेकी अर्जी पेश करेगी। श्री रोडने कहा कि मुझे सन्देह है कि सारी रैयत ऐसा करेगी; उन्होंने यह भी कहा कि अगर केवल एक या दो रैयतोंपर तिन-कठिया प्रथा लागू रहेगी, तो बड़ी असुविधा होगी। अध्यक्षने कहा कि मुझे मालूम हुआ है कि गवर्नर महोदय इस प्रथाको बन्द कर दिये जानेके पक्षमें हैं। श्री गांधीने कहा कि इसमें कानूनी अड़चनें सामने आयेंगी, पर मैं यह माननेको तैयार हूँ कि इस प्रथाको कमेटीकी सिफारिशके परिणामस्वरूप बन्द कर दिया जाना चाहिए। अध्यक्षने कहा कि रैयतको इकरार-नामा भरनेकी अनुमतिका न दिया जाना――और ऐसा उचित भी है――एक बात है और रैयतकी इच्छा रहते हुए भी उन्हें, इकरारनामेसे पृथक् रखा जाना दूसरी बात। रैयतका हक पूर्ण रूपसे सुरक्षित है, क्योंकि न्यायाधिकरण उचित लगानसे अधिक लगान निश्चित करनेमें असमर्थ है। अध्यक्षने आगे चलकर कहा कि तुरकौलियामें रैयतका पाँच फीसवी भाग अब भी तिन-कठिया प्रथाको बनाये हुए है। श्री हिल अपनी बातको सिद्ध करनेके लिए जिन-जिन तथ्योंपर भरोसा किये बैठे हैं उनमें से एक यह भी है। श्री गांधीने कहा कि जब खुश्की नील बड़े पैमानेपर उगाई जा रही है――आशा भी ऐसी ही थी――तब रैयतको तिन-कठिया करारमें बँधे होनेके कारण, यह शीघ्र मालूम हो जायेगा कि परिवर्तन करा लेना उनके हितमें होगा। श्री रेनीने कहा कि यदि किसी सूरतसे पुरानी प्रथा चालू रह गई तो नई खुश्की-प्रथाके कार्यान्वित किये जानेमें बाधा पड़ सकती है। श्री गांधीने कहा कि मैं इस सिफारिशको समूचे समझौतेके एक अंशके रूपमें तो माननेको तैयार हूँ, परन्तु यदि न्यायाधिकरणकी नियुक्ति की गई तो नहीं; उस सूरतमें विधान द्वारा तिन-कठिया समाप्त कर दी जायेगी और जमींदारके हाथमें, अगर उसकी इच्छा हुई, इस आशयको अर्जी देनेका विकल्प रह जायेगा कि मुआवजेके रूप में अतिरिक्त लगान निर्धारित कर दिया जाये।

इसके बाद समितिको बैठक स्थगित हो गई।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १८३, पृष्ठ ३६१-५।
  1. ३. सिरनी कारखानेके मालिक।