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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इरादा तो यह है कि मैं श्री हिलसे मिलकर उन्हें मामलेको पंचोंके सुपुर्द कर देनेके लिए राजी करूँ। अगर मैं ऐसा न कर पाया और यदि मुझे ऐसा लगा कि श्री हिलकी दलीलें काफी मजबूत हैं तो मुझे बागान-मालिकोंके प्रस्तावके बारेमें मेरे द्वारा पहले प्रकट की गई अस्वीकृतिपर फिरसे विचार करना होगा। अध्यक्षने कहा कि श्री हिलने मुझसे कहा है कि वे न तो कमेटी द्वारा प्रस्तावित सरपंचकी नियुक्तिके बारेमें और न फैसलेको २० और ४० फी सदीके अन्दर सीमित करनेके बारेमें अपनी रजामन्दी दे रहे हैं। अलबत्ता वे पटना या कलकत्ता उच्च न्यायालय से किसी यूरोपीय न्यायाधीशको जिसे भूधारण कानून-(टैनेसी एक्ट) का पूरा ज्ञान हो, या किसी व्यापारी वर्गके व्यक्तिको पंच बनानेको तैयार हैं, श्री गांधीने कहा कि इस बातसे कि आखिरकार पंचों द्वारा निर्णय किये जानेकी सम्भावना हो गई है; मेरे मनमें आशा बँध रही है। उन्होंने यह कहते हुए कि यदि पंचोंमें एक व्यक्ति मामलेकी पूरी जानकारी रखनेवाला[१] हुआ तो समितिको सुविधा रहेगी, श्री हिलसे पूछा कि क्या आप चम्पारनसे एक पंचका लिया जाना स्वीकार न करेंगे। मैंने कुछ दिन पूर्व यह सुझाव पेश किया था कि एक न्यायाधिकरण जिसके सदस्य श्री एपरले[२], पं० मदनमोहन मालवीय और अध्यक्ष श्री हेकॉक हों, नियुक्त किया जाये। और यदि दूसरे पक्षवाले राजी हों तो श्री हेकॉकको अध्यक्षके रूप में स्वीकार करनेमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। श्री रोडने कहा कि मेरा तो जरूर यह खयाल है कि बागान-मालिक श्री हेकॉकको स्वीकार कर लेंगे, परन्तु अध्यक्षको इसके बारेमें सन्देह है। श्री गांधीने कहा कि यदि वे श्री हेकॉकको अध्यक्षके रूपमें स्वीकार करनेको तैयार हैं तो यह समझा जायेगा कि चुनाव उक्त दोनों अंकों [२० से ४०] के बीच ही होना चाहिए। श्री रोडने कहा कि मेरा ऐसा खयाल नहीं है कि श्री हिल इस आधारपर बात स्वीकार कर लेंगे। अध्यक्षने कहा कि श्री हिलका खयाल यह है कि वे, गलत हो या सही, अपनी शरहबेशी स्वेच्छासे २० प्रतिशत कम करानेको तैयार हैं, परन्तु पंचोंके निर्णयके द्वारा अधिक दिये जानेकी मजबूरीका जोखिम उठानेको तैयार नहीं हैं। यदि यह कहना उनकी ही मरजीपर छोड़ दिया जाये कि आया वे बिना किसी द्वेषके अधिक देनेको तैयार हैं या नहीं, तो शायद वे कहेंगे कि हाँ, तैयार हूँ, में अधिक देना स्वीकार करता हूँ । श्री हिलने कहा कि जिस बातको मैं अपने आचरणकी तीव्र निन्दाके रूपमें ले रहा हूँ उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं कर सकता। अलबत्ता, यदि कानूनके अन्तर्गत नियुक्त न्यायाधिकरणके द्वारा दिये गये निर्णय में मेरे आचरणको तीव्र निन्दा आती है, तो स्वीकार कर लूंगा। यह विषय व्यवसाय से नहीं, अन्तरात्मासे सम्बन्धित है। यह निश्चय किया गया कि श्री रोड और अध्यक्ष महोदय श्री हिलसे तुरन्त मुलाकात करें और श्री रोड तथा श्री गांधी उनसे तीसरे पहर मिल लें। अध्यक्षने कहा कि मेरा खयाल तो यह है कि यदि यह मुलाकात कामयाब हो गई तो दूसरी नील-पेढ़ियोंके प्रबन्धक श्री नॉर्मन, श्री इर्विन, श्री जेम्सन

  1. १. देखिए “चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे”, १४-८-१९१७।
  2. १. देखिए “चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे”, १४-८-१९१७।