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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बन्धनकारी विधान लागू न होगा। ऐसा करनेसे उन्हें सन्तोष हो सकता है। श्री गांधीने कहा कि श्री नॉर्मनके मामलेके बारेमें, उनकी पेढ़ीकी हदतक समझौतेको कार्यान्वित करनेमें कोई कठिनाई न होगी। इकरारनामा क्रमशः एकके बाद एक प्रत्येक गाँवसे लिखाया जा सकता है। अध्यक्षने कहा कि केवल एक पेढ़ोके लिए कानून बनाना कठिन होगा। श्री ऐडमीने कहा कि इसकी जरूरत ही न पड़ेगी। विधानकी रूपरेखा इस प्रकारकी रखी जा सकती है कि या तो लगानको निश्चित करनेके सम्बन्धमें दोनों पक्ष न्यायाधिकरणमें अर्जी पेश करें या मध्यस्थताके लिए पंच फैसलेकी माँग करें। अगर पंचों द्वारा मामला तय कराना है तो यह व्यवस्था करनी होगी कि फैसले-पर न्यायाधिकरण द्वारा अमल किया जाये। इस मामलेमें यह जरूरी नहीं है कि विधानमें किसी खास पेढ़ीका नाम लिया जाये। श्री गांधीने कहा कि पक्षोंकी रजामन्दीसे कोई बात साधारणतया शायद ही बनती हो। श्री गांधीने अब [इस मामलेमें] अपने तथा समितिके शेष सदस्योंके बीच मतभेद स्वीकार करते हुए यह पूछा कि उस मतभेदको वास्तविक मतभेद मानकर समितिको [खास] सिफारिशके रूपमें रखा जा सकता है या नहीं। अध्यक्षने कहा कि जब इसके पूर्व इस मामलेपर विचार किया जा रहा था, तब मेरा खयाल यह था कि बागान-मालिकोंके द्वारा शरहबेशीको छोड़ देनेका कोई सवाल ही नहीं उठता। परन्तु उन्होंने अपनी मरजीसे शरहबेशीका कुछ अंश छोड़ देनेकी स्वीकृति दे दी थी, ताकि सद्भावनाके साथ समझौता किया जा सके। मैं बागान-मालिकोंकी रजामन्दीके बिना सरकारसे और आगे बढ़नेको सिफारिश करनेको तैयार नहीं हूँ। श्री रोडने यह भी कहा कि अधिकसे-अधिक जो-कुछ हो सकता है, सो सूचित किया जा चुका है, उससे अधिक किये जानेके प्रस्तावसे मैं सहमत नहीं हूँ। अध्यक्षने कहा कि जबतक श्री गांधी इन सीमाओंको माननेको तैयार नहीं हो जाते, तबतक आपसकी सहमतिसे किये गये समझौतेकी सम्भावना नहीं है। श्री रोडने पूछा कि क्या इस प्रकारके समझौतेकी सम्भावना है जिसमें शुरू-शुरूमें तो ४० की सदीकी और कुछ साल बाद २५ फी सदीकी कमी की जा सके। अध्यक्षने कहा कि मेरे खयालसे बागान-मालिक इसके लिए राजी न होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे मालूम हुआ है कि यद्यपि श्री इविन अपना वचन पूरा करेंगे तथापि उससे बच निकलनेका कोई मार्ग भिल जानेपर उन्हें प्रसन्नता ही होगी। अध्यक्षने श्री गांधीसे पूछा कि रैयतोंके हकमें क्या हितकर होगा, बागान-मालिकों द्वारा निर्धारित सीमाका स्वीकार कर लेना या कानूनको रूसे निपट लेना। मेरा खयाल तो यह है कि अगर मामलेको कानूनको मददसे निपटानेको छोड़ दें, तो असफलताको सम्भावना बहुत अधिक है; इसलिए उस मार्गको न अपनाना ही लाभदायक होगा। श्री गांधीने कहा कि मुझे इसमें खतरा नहीं दीख पड़ता क्योंकि मुझे पूरा भरोसा है कि मैं बातको साबित कर ले जाऊँगा। अध्यक्षने गांधीजीसे पूछा कि आप किस आधारपर ऐसा भरोसा कर रहे हैं। में यह सवाल इसलिए कर रहा हूँ कि आपने अपनी बात समितिके चार सदस्योंके समक्ष रखी जरूर है, परन्तु आप