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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सूचना दिये बीच-बीचमें तीसरे दर्जेकी यात्राका अनुभव प्राप्त किया करें। इससे तीसरे दर्जेके यात्रियोंकी दशामें आश्चर्यजनक परिवर्तन हो जायेगा और ऐसे लाखों यात्री जो शिकायतें नहीं करते और मामूली आरामसे एक स्थानसे दूसरे स्थानको जानेकी आशा करते हैं, अपने दिये हुए किरायेके बदले कुछ आराम पाने लगेंगे।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
लीडर, ४-१०-१९१७

४१०. पत्र: जमनालाल बजाजको

रांची
आश्विन शुक्ल ९ [सितम्बर २५, १९१७][१]

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र एक मुंबईमें मैं रेलपर जाता रहा उस वखत मीला था। इस बारेमें मैंने आपके पास मेरा भतीजाको जानेका कह दीया था। अब रामनारायणजीका पत्र आ गया है। ये रखने लायक देख पडते है। थोड़ी और हकिकत उनके पास मंगवाया हुं। दो शिक्षक मनेर से मीले है। एकको रख लीया हुँ। दूसरेकी बात कर रहा हुँ। दो मासके बाद वे आ सकेंगे। रामनारायणजी तीसरे होंगे। इतनेसे गुजारा हो जायेगा।

आपका,
मोहनदास गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र (जी० ए० २८३५) की फोटो-नकल से।

४११. पत्र: मगनलाल गांधीको

राँची
मंगलवार [सितम्बर २५, १९१७ या उसके बाद][२]

चि० मगनलाल,

मैं अभी बुखारसे मुक्त नहीं हुआ हूँ। सावधानी बरत रहा हूँ। दवा नहीं लेता। मुक्त हो जाऊँगा, ऐसा विश्वास है। चिन्ता करनेका कारण नहीं है।

  1. १. गांधीजी इस तारीखको रांची में थे। मूल पत्रमें भाद्रपद शुक्ल ९ दिया है। प्रतीत होता है कि यहाँ कुछ गलती हो गई है; होना आश्विन शुक्ल ९ चाहिए था क्योंकि पहली तिथिको गांधीजी रांचीमें नहीं थे। पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद पुस्तकमें भी पत्रकी तारीख २५ सितम्बर दी गई है।
  2. २. पत्रमें आश्रमकी इमारतोंके बारेमें अमृतलाल ठक्करके सुझावोंका उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि यह पत्र मगनलाल गांधीके नाम लिखे गये २३ सितम्बर १९१७ के पत्रके बादका है।