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पत्र: अखबारोंको

लाचार होता है। चाहे उन स्थानोंमें जाना मौतको बुलाना ही क्यों न हो, परन्तु फिर भी वह शिकायत नहीं करना चाहता। मैं ऐसे यात्रियोंको जानता हूँ जो रेलोंमें अपने कष्ट कम करनेके लिए ही उपवास करते हैं। सोनपुरमें यात्रियों तथा अधिकारियोंको सावधान करनेके लिए मक्खियाँ नहीं थीं तो बरें थीं। परन्तु उनसे भी कोई फल नहीं हुआ। शाही राजवानीमें तीसरे दर्जेका एक टिकटघर बिलकुल काल-कोठरी है और केवल नष्ट करनेके ही योग्य है।

ऐसी दशामें यदि प्लेग भारतमें एक राष्ट्रीय रोग हो गया है तो यह आश्चर्यकी बात नहीं है। जहाँ यह हालत हो कि यात्री जहाँ पहुँचते हों वहाँ कुछ गंदगी फैलाते हों और जाते हों तो अपने साथ उससे भी अधिक गन्दगी ले जाते हों वहाँ कोई अन्य परिणाम हो ही नहीं सकता।

केवल भारतीय रेलोंमें ही ऐसा है कि यात्री बिलकुल निर्भय होकर सभी डिब्बोंमें तम्बाकू या सिगरेट पीते हैं और स्त्रियोंकी उपस्थितिका एवं उन लोगोंके विरोधका ध्यान नहीं करते जो तम्बाकू नहीं पीते। यद्यपि ऐसा विनियम है कि जो डिब्बा केवल तम्बाकू पीनेवालोंके लिए ही नियत न हो उसमें बिना अपने साथी यात्रियोंकी आज्ञाके तम्बाकू पीना वर्जित है; किन्तु लोग उसकी परवाह नहीं करते।

इस जबरदस्त बुराईको दूर करनेमें इस भीषण युद्धको भी आड़े नहीं आने दिया जा सकता। युद्धके कारण इस गन्दगी और भीड़-भाड़को सहन करना उचित नहीं हो सकता। यह तो समझमें आ सकता है कि ऐसे कठिन समयमें यात्रियोंका आना-जाना ही बन्द कर दिया जाये; परन्तु यह समझमें नहीं आ सकता कि उस गन्दगी और उन स्थितियोंको कायम रखा जाये या उनमें वृद्धि की जाये जिनसे स्वास्थ्य और नीतिको हानि पहुँचती है। अब जरा पहले दर्जेके यात्रियोंकी दशाकी तुलना तीसरे दर्जेके यात्रियोंकी दशासे कीजिए। मद्रासका पहले दर्जेका किराया तीसरे दर्जेके किरायेसे पँचगुनेसे कुछ अधिक होता है। किन्तु पहले दर्जेके यात्रियोंको जितनी सुविधाएँ मिलती हैं, तीसरे दर्जेके यात्रियोंको क्या उसका पाँचवाँ हिस्सा, बल्कि दसवाँ हिस्सा भी मिलती हैं? यह माँग करना निस्सन्देह न्याय्य है कि खर्च और सुविधाओंमें कुछ अनुपात रखा जाना चाहिए।

यह बात सभी लोग जानते हैं कि पहले और दूसरे दर्जेके यात्राकी दिनपर-दिन बढ़नेवाली सुख-सुविधाओंका खर्च तीसरे दर्जेके यात्री ही देते हैं। तीसरे दर्जेके यात्रियोंको कमसे-कम बिलकुल जरूरी सुविधाएँ प्राप्त करनेका अधिकार तो है ही।

तीसरे दर्जेके यात्रियोंकी उपेक्षा करनेका अर्थ लाखों आदमियोंको व्यवस्था, सफाई―और सभ्य, संयुक्त जीवनकी उत्तम शिक्षा देने और लोगोंमें सीधी-सादी और परिष्कृत रुचि उत्पन्न करनेका अवसर खोना भी है। इस दिशामें शिक्षा प्राप्त करनेके बजाय तीसरे दर्जेके यात्रियोंको यात्रामें जो अनुभव होता है उससे सुघड़ता और स्वच्छताकी भावना और भी कुंठित हो जाती है।

उक्त दोषको दूर करनेके लिए जो-जो उपाय बतलाये जा सकते हैं उनमें में एक यह उपाय नम्रतापूर्वक जोड़ देना चाहता हूँ: बड़े लाट, जंगी लाट, राजे महाराजे, इम्पीरियल कौंसिलके मेम्बर और ऊँचे दर्जेमें यात्रा करनेवाले उच्च वर्गोंके अन्य लोग बिना पहलेसे

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