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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनका खयाल है कि श्री गॉलेकी रिपोर्ट छापी जानी चाहिए। अध्यक्षने कहा कि यह तय करना सरकारका काम है। श्री गांधीने कहा कि वे इन कागजातोंका उल्लेख अपनी रिपोर्टमें करनेके खयालसे छपवाना चाहते हैं। अध्यक्षने कहा कि वे छापे न जायें तब भी श्री गांधी उनका उल्लेख कर सकते हैं।

बैठक इसके बाद स्थगित हो गई।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १८२, पृष्ठ ३५६-६१।
 

४०९. पत्र: अखबारोंको[१]

रांची
सितम्बर २५, १९१७

सेवामें

सम्पादक,
'लीडर'

महोदय,

दक्षिण आफ्रिकासे भारतमें आये हुए मुझे ढाई वर्षसे कुछ अधिक समय हो गया। इस समयका एक चतुर्थांश मैंने स्वेच्छापूर्वक भारतीय रेलोंके तीसरे दर्जेमें यात्रा करनेमें बिताया है। मैंने उत्तरमें लाहौर तक, दक्षिणमें ट्रेंकेबार तक और कराचीसे कलकत्ते तक यात्रा की है। मेरे तीसरे दर्जेमें यात्रा करनेके अनेक कारणोंमें से एक कारण उस हालतकी जानकारी प्राप्त करना था जिनमें इस दर्जेके यात्री यात्रा करते हैं और इसीलिए मैंने जहाँतक हो सका है, उसका बहुत ही सूक्ष्मतासे अवलोकन किया है। इस अवधिमें मैंने अधिकांश रेलोंकी व्यवस्था बड़ी बारीकीसे देखी है। जो-जो त्रुटियाँ मेरे देखने में आईं उनके सम्बन्धमें मैंने भिन्न-भिन्न रेलोंके प्रबन्धकर्ताओंसे समय-समयपर पत्र-व्यवहार किया है। लेकिन मैं समझता हूँ, अब समाचारपत्रों तथा सर्वसाधारणसे यह कहनेका समय आ गया है कि वे सब मिलकर इस कष्टके विरुद्ध धर्म-युद्धमें प्रवृत्त हों; यह कष्ट यद्यपि बिना अधिक कठिनाईके ही दूर होसकता है तथापि इतना समय बीत जानेपर भी दूर नहीं किया गया है।

इस महीनेकी १२ तारीखको मैंने बम्बईसे मद्रासकी डाकगाड़ीका टिकट लिया और १३ रुपये ९ आने दिये। डिब्बेपर लिखा हुआ था कि यह डिब्बा २२ यात्रियोंके

 
  1. १. भारतीय रेलोंमें तीसरे दर्जेकी यात्राके सम्बन्धमें। गांधीजीने इसकी प्रति वाणिज्य और उद्योग सचिवको दिल्ली भेजी थी और उसके साथ भेजे गये अपने पत्रमें कुछ सुझाव भी दिये थे। देखिए खण्ड १४, “पत्र: वाणिज्य और उद्योग-सचिवको”, ३१-१०-१९१७।