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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

नियुक्त ही न किया जाये। न्यायाधिकरण नियुक्त हो या न हो, एक मुद्दा तो ऐसा रहता ही है जिसे सरकारको तय करना होगा। श्री रेनी ने कहा कि यदि न्यायाधिकरणका इन सब मामलोंपर विचार करना आवश्यक हो तो समस्त मामलेको सामान्य न्यायालयोंके लिए छोड़ देना और सम्बन्धित मुकदमोंको तय करनेके लिए केवल एक विशेष न्यायावीश नियुक्त कर देना सम्भवतः ज्यादा आसान बात होगी। श्री गांधीने कहा कि यदि सरकारको इतना भी लगा कि सहज न्याय इस मामलेके पक्षमें है तो वह न्यायाधिकरण नियुक्त कर देगी, क्योंकि, जैसा अध्यक्ष कह चुके हैं, वह एक मनमाना आदेश निकालनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं ले सकती। श्री ऐडमीने कहा, मेरे खयालसे न्यायाधिकरणको अपनी मरजीके अनुसार काम करनेका अधिकसे-अधिक अधिकार दिया जाना चाहिए। श्री रेनीने कहा, तुरकौलियाका मामला बहुत-कुछ डराये-धमकाये जानेकी बातको लेकर ही लड़ा गया है और यही मुद्दा न्यायाधिकरणके सम्मुख आनेवाले शरहबेशीके मामलोंमें भी उठाया जा सकता है। परन्तु न्यायाधिकरण उन किसानोंके मामलोंपर भी विचार करेगा जिनसे शरहवेशी नहीं ली गई है; और फिर भी जिन्होंने इस दायित्वको समाप्त करनेके आवेदन दिये होंगे। यदि न्यायाधिकरण इन पिछले मामलोंमें लगान बढ़ाने देता। है――तो वह इससे पूर्व उल्लिखित उन मामलोंमें भी लगान क्यों न बढ़ाने देगा जिनमें डर या धमकीके कारण समझौता बेकायदा है? अतः मेरा खयाल यह नहीं है कि डर या धमकीको बात कोई बहुत बड़ी बात है। इस तरहके मामलोंको व्यवस्था रखनेके लिए ही मैंने यह सुझाव दिया है कि न्यायाधिकरण उन सभी बातोंपर विचार करे जिनका सम्बन्ध वह इस प्रश्नसे समझे। श्री रोडने पूछा कि न्यायाधिकरणका खर्च कौन देगा। अध्यक्षने कहा कि खर्च शायद सरकार देगी। उन्होंने श्री गांधीसे पूछा, न्यायाधिकरण कितना समय लगायेगा, क्या यह बता सकते हैं? श्री गांधीने कहा, स्थितियाँ ज्यादासे-ज्यादा अनुकूल रहें तो भी मेरे खयालसे इसमें कमसे-कम एक मास लगेगा। श्री ऐडमीका खयाल था कि इसमें इससे बहुत ज्यादा समय लगेगा।

छपी हुई गवाहीके सम्बन्धमें श्री गांधीने कहा कि वे चाहते हैं कि तीन किसानोंकी जो लिखित गवाही खुले तौरपर ली गई है, उसके साथके कागज भी छापे जायें। अध्यक्षने कहा कि वे परिशिष्टके रूपमें छापे जा सकते हैं। श्री गांधी यह भी चाहते थे कि उन्होंने जिन दूसरे किसानोंके बयान पेश किये हैं, वे भी छापे जायें। श्री रोडने इसपर आपत्ति की। अध्यक्षने कहा कि जिन गवाहोंसे अनौपचारिक रूपसे पूछताछ की गई है, यदि उनके बयान छाप दिये जायें तो यह श्री गांधीके उद्देश्यकी पूर्तिके लिए काफी होगा। श्री गांधीने कहा कि वे इन बयानोंको ध्यानसे पढ़कर इस मुद्देपर विचार करेंगे। वे यह भी चाहते थे कि उन्होंने फैसलोंकी जो नकलें दाखिल की हैं वे भी छापी जायें। अध्यक्षने कहा कि इससे यह रेकार्ड बहुत भारी-भरकम हो जायेगा। ये सब फैसले सरकारी दस्तावेज हैं। उनका छापा जाना उतना जरूरी नहीं है जितना जरूरी समितिके सामने पेश किये गये सरकारी कागजातोंको छापना है। श्री गांधीने कहा कि