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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विचार करे। उसकी मरजीकी भी हद है, क्योंकि वह मूल लगानसे कम लगान नहीं बाँध सकता और न शरहबेशीको मिलाकर कुल जितना मौजूदा लगान है उससे ज्यादा बढ़ा ही सकता है। अध्यक्षने कहा कि उन्होंने मार्गदर्शनके लिए जो मुद्दे सुझाये हैं वैसे कुछ मुद्दोंके बिना तो वे भाल-अधिकारीकी हैसियतसे लगान-बन्दोबस्त करनेमें झिझकेंगे। श्री रोडने बताया कि बन्दोबस्तके कागजात उपलब्ध हैं और उनसे न्यायाधिकरणको सहायता मिलेगी। अध्यक्षने कहा कि बन्दोबस्तके ये कागजात उत्तर भारतमें लगान-निर्धारणका जो अर्थ है उसको ध्यानमें रखकर तैयार नहीं किये गये हैं और उनके विचारसे तो इससे यह कार्रवाई बहुत लम्बी हो जायेगी। श्री रेनीने अपने विचारपर जोर नहीं दिया; किन्तु उनका खयाल यह था कि किन मुद्दोंपर विचार करना है इसका निर्णय न्यायाधिकरणपर छोड़ दिया जाना चाहिए। अध्यक्षने कहा कि यह मंशा पूरा हो सकता है, बशर्तो कि अन्य बातोंका खयाल करते हुए यह व्यवस्था कर दी जाये कि न्यायाधिकरण ऊपर बताये गये तीन मुद्दोंको ध्यान रखे। श्री गांधीने कहा कि यदि कोई ऐसी सिफारिश की जायेगी जिससे बंगाल काश्तकारी कानूनकी धाराएँ और सख्त हो जाती हों तो उसका विरोध विधान परिषद्में किया जायेगा। जहाँतक सम्भव हो, समितिके सुझावका उद्देश्य कानूनको नरम बनाना होना चाहिए, उसे सख्त बनाना नहीं। श्री रोडने कहा, मेरे खयालसे यदि न्यायाधिकरणको यह अधिकार दिया जाये कि वह केवल उस लगानपर ही विचार करे जो बन्दोबस्तके वक्त मुकर्रर किया गया था और आवश्यक होनेपर उसमें कमीबेशी करे तो यह ज्यादा आसान होगा। अध्यक्षने कहा कि विशेष न्यायाधिकरणको केवल उन्हीं किसानोंके मामलोंपर विचार करना होगा जिनका दायित्व कागजातमें दर्ज है या जिनसे शरहवेशी ले ली गई है। यह बात मान ली गई कि सूचना निकलनेकी तारीखसे तीन महीने तक न्यायाधिकरण प्रार्थनापत्र स्वीकार करेगा और यदि इस असमें प्रार्थनापत्र नहीं दिये गये तो बन्दोबस्तके कागजातमें लिखी हुई बात अन्तिम मानी जायेगी। श्री ऐडमोको एक ऐसा अनुच्छेद तैयार करनेके लिए कहा गया जिसमें ये सब निर्णय आजायें। यह अनुच्छेद रिपोर्टके अनुच्छेद २४ के अन्त में जोड़ा जायेगा।

श्री गांधी यह व्यवस्था भी कराना चाहते थे कि न्यायाधिकरण डराने-धमकाने, अनुचित प्रभाव डालने और अन्य गैरकानूनी कार्योंके मामलोंकी सुनवाई करे अर्थात् वह तिन-कठिया प्रथाके पुराने इतिहासकी छानबीन करे। श्री ऐडमीने कहा कि इसमें बहुत समय लगेगा। श्री गांधीने कहा कि एक नमूनेका मामला ले लिया जाये और अन्य मामलोंमें उसीका अनुकरण किया जाये। अध्यक्षने कहा कि मेरे खयालसे इस धारा में कि न्यायाधिकरण यह तय कर सकता है कि मुआवजा दिया जाये तो कितना दिया जाये――इस व्यवस्थाका समावेश हो जाता है। काश्तकार यह युक्ति दे सकता है कि चूँकि गोरा जमींदार अबतक काफी मुआवजा वसूल कर चुका है, इसलिए अब कोई मुआवजा देय नहीं है। मैं समझता हूँ कि श्री गांधी अपने इस मूल रुखपर आ रहे हैं कि न्यायाधिकरण