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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

प्रकट की। राजा कोर्त्यानन्द सिंहने कहा, यदि श्री गांधी शहरबेशीमें २५ प्रतिशतको कमीसे सहमत हो जायें तो मैं इसे ज्यादा पसन्द करूंगा, क्योंकि इससे न्यायाधिकरण, जो स्पष्टतः बहुत कष्टप्रद होगा, नियुक्त न करना पड़ेगा। समितिने स्वीकार किया कि न्यायाधिकरणका दूसरा सदस्य माल अधिकारी हो और वह कलेक्टरसे नीचे दजॅका न हो। श्री रेनीने कहा कि वे न्यायाधिकरणके तीसरे सदस्यका चुनाव स्थानीय सरकारपर छोड़ना पसन्द करेंगे, क्योंकि सम्भव है वह न तो जजको नियुक्त करना चाहे और न माल अधिकारीको। श्री ऐडमीने कहा कि वे तीसरा सदस्य किसी न्याय अधिकारीको बनाना ज्यादा पसन्द करेंगे। श्री गांधीको भी न्याय अधिकारीको नियुक्ति ही ज्यादा पसन्द थी। उन्होंने कहा कि यहाँ जो मामला पेश है वह वैसा नहीं है जैसा पंच-निर्णय में होता है। औपचारिक न्यायाधिकरणमें वे न्याय अधिकारियोंका बहुमत रखना पसन्द करते। अध्यक्षने पूछा कि क्या उच्च न्यायालयका न्यायाधीश और जिला जज साथ-साथ बैठ सकते हैं। श्री ऐडमीने कहा कि उनके खयालसे इसमें कोई आपत्ति नहीं है। श्री रेनीने कहा कि सरकारकी इच्छा किसी बैरिस्टर या वकीलको रखनेकी हो सकती है और उसकी इच्छा न्यायाधिकरणमें कमसे-कम एक भारतीयको रखनेकी भी हो सकती है। उनका खयाल था कि यदि वे न्यायाधिकरणके सदस्योंके सम्बन्ध में बहुत विस्तृत सिफारिश करेंगे तो उससे सरकार के हाथ बँध जायेंगे। उसके बाद अध्यक्षने न्यायाधिकरणके कर्त्तव्योंका प्रश्न उठाया। उन्होंने सुझाव दिया कि आवश्यक कानून बनाकर उसके कर्त्तव्य कुछ-कुछ इस प्रकार निर्धारित कर दिये जाने चाहिए――

यह कि एक निर्धारित समयके भीतर किसी भी पक्षके प्रार्थनापत्र देनेपर न्यायाधिकरण यह निर्णय करेगा:

(१) [रैयत पर] नील बोनेका दायित्व है या नहीं।
(२) यदि है तो बेशी लगानके रूपमें, मुआवजा दिया जाना चाहिए या नहीं, यदि दिया जाना है तो कितना।
(३) यदि न्यायाधिकरण यह निर्णय दे कि मुआवजा दिया जाये तो वह उस मुआवजेका निर्धारण करते समय इन मुद्दोंका ध्यान रखे:
(क) लगानकी मात्रा किसी भी हालतमें उचित और न्याय्य लगानसे अधिक न हो;
(ख) मौजूदा लगान और वह अर्सा जिसमें बेशी लगान नहीं रहा; और
(ग) शरहबेशीकी वास्तविक दर जो किसी जमींदारीमें या पास-पड़ोसकी जमींदारियोंमें ली गई हो।

श्री ऐडमीने कहा कि यदि न्यायाधिकरणको कम दर निर्धारित करनी हो तो यह तरीका शायद सबसे अच्छा है। यह सुझाव दिया जा चुका है कि स्थितियाँ चाहे जैसी हों, न्यायाधिकरण उचित और न्याय्य लगान बाँधे। श्री रेनीने कहा कि उनकी दृष्टिसे न्यायाधिकरणको यह तय करने के लिए मुक्त छोड़ देना चाहिए कि वह किन मुद्दोंपर