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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कानून-सम्मत माना गया है। रिपोर्ट-भरमें यह एक ही प्रमुख विचार मिलता है। अध्यक्षने कहा कि यदि श्री गांधी रिपोर्टको बारीकीसे पढ़ जायें, तो इसके प्रत्येक भागपर अलग-अलग विचार किया जा सकता है।

पंच-निर्णयकी संभावनापर विचार करते हुए श्री गांधीने कहा कि मेरे खयालसे यदि गोरे जमींदार यह मानते हैं कि उनका मामला कानूनको दृष्टिसे ठोस है तो उनका पंच-निर्णय लेनेसे इनकार करना अव्यावहारिक है। अध्यक्षने पूछा कि क्या श्री नॉर्मन पंच-निर्णयके लिए रजामंद हैं, यदि वे रजामंद हों तो एक उन्हींका मामला लेना ठीक होगा। श्री रेनीका खयाल था कि इससे दोनोंमें से एक पक्षका खयाल यह बन सकता है कि स्थानीय सरकार अन्य मामलोंमें निष्पक्ष न्याय करनेमें असमर्थ है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि एक विशेष न्यायाधिकरण नियुक्त कर दिया जाये तो बागान-मालिकोंको प्रत्येक मामला विस्तारसे चलानेके बजाय न्यायाधिकरणसे पंच-निर्णय लेनेकी मालिकोंको प्रत्येक मामला विस्तारसे चलानेके बजाय न्यायाधिकरणसे पंच-निर्णय लेनेकी बात माननेके लिए स्वतन्त्र छोड़ा जा सकता है। अध्यक्षने कहा कि उनकी समझ में इससे कोई लाभ नहीं होगा।

तब अध्यक्षने सुझाव दिया कि न्यायाधिकरणकी रचना और उसके कर्त्तव्योंपर विचार कर लिया जाये। श्री ऐडमीने कहा कि उसमें तीन सदस्य हों जिससे मतभेद होनेपर निर्णय हो सके। उनका खयाल यह भी था कि यदि कोई कानूनी मुद्दा हो तो उसके सम्बन्धमें उच्च न्यायालयसे निर्णय लिया जा सकता है। इसमें एक यही प्रश्न हो कि इस दायित्वसे मुक्तिके लिए मुआवजेकी उचित रकम क्या हो। समितिने न्यायाधिकरणके सदस्योंको संख्या तीन रखना स्वीकार किया और तब उसके सदस्यों के सम्बन्धमें विचार किया गया। अध्यक्षने सुझाव दिया कि न्यायाधिकरणमें निम्न सदस्य हों:

(१) एक न्याय विभागका अधिकारी जो जिला-जजसे नीचे दर्जेका न हो,

(२) एक माल अधिकारी जो कलेक्टरसे नीचे दर्जेका न हो, और

(३) एक अन्य जज या एक अन्य माल-अधिकारी।

इनमें (१) के सम्बन्धमें श्री रेनीने यह प्रस्ताव किया कि न्याय विभागका अधिकारी उच्च न्यायालयका न्यायाधीश हो और न्यायाधिकरणके निर्णय के विरुद्ध अपील न हो।

किन्तु श्री गांधीका खयाल था कि अपीलका अधिकार होना चाहिए, क्योंकि न्यायाधिकरण कभी-कभी भूल कर जाते हैं। न्यायाधिकरणमें न्याय विभागका अधिकारी चाहे उच्च न्यायालयका न्यायाधीश हो चाहे जिला जज, उनका विचार दोनों दशाओंमें एक ही था। उन्होंने यह माना कि अपीलका अधिकार कानूनी मुद्दों तक ही सीमित रहे। श्री ऐडमीने कहा कि यदि न्यायाधिकरणमें उच्च न्यायालयका न्यायाधीश रहेगा तो वह अपीलकी अनुमति न देगा; किन्तु सूक्ष्म नियमकी दृष्टिसे न्यायाधिकरणके निर्णयके विरुद्ध अपीलकी अनुमति देनेमें कोई आपत्ति नहीं है। श्री रोडने भी श्री रेनीसे सहमति